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अपभ्रंश-साहित्य ... ... ... कि फुल्लई गन्ध विवक्जिएक। . किं. भोजई जस्थ ग होइ लवणु, जहि गयण ण वर सो काडू बयनु। १.४ इसी प्रकार'विणु तर पत्तई गउ होइ छाहि' "विणु छेत्तई गउ वावियहि घणा'
"विणु देवइ देवलु कत्य होइं' कवि ने कड़वकों के आरम्भ में हेला, दुवई, वस्तुबंध आदि छंदों का प्रयोग किया है । अंथ में छंदों की बहुरूपता दृष्टिगोचर नहीं होती। छंदों में कहीं कहीं अन्त्यानुप्रास (क) उचित रूप से प्रयुक्त नहीं हुई । यथा
संसारिउ सुक्ख अणत्य मृलु, सेवइ मोहंघउ जीव वालु।
विसयहो सुहवासहो वेवि होइ, पुणु जीउ अणंतउ दुहु सहेइ। २.२०
बाहु बलि चरित इस अप्रकाशित ग्रंथ की दो हस्तलिखित प्रतियाँ आमेर शास्त्र भण्डार जयपुर में वर्तमान हैं। (प्र० सं० १० १३८-१४७)। ___ ग्रंथ के लेखक धनपाल गुर्जर देश के रहने वाले थे। पल्हण पुर इन का वासस्थान था। इनके पिता का नाम सुहड एव (सुभट देव) तथा माता का नाम सुहडा एवी (सुभटा देवी) था। यह पोखर जाति में उत्पन्न हुए थे । कवि के समय राजा वीसल देव राज्य करते थे। योगिनी पुर (दिल्ली) के शासक का नाम इन्होंने महमंद साह लिखा है।'
१. गुज्जर देस मज्मि णयवट्टणु, वसइ विउलु पल्हणपुर पट्टणु। वीसलएउ राउ पयपालउ, कुवलय मंडणु सयलु व मालउ। तहिं पुर वाड वंस जायामल, अगणिय पुव्व पुरिस णिम्मल कुल। पुणु हुउ राय सेट्ठि जिण भत्तउ, भोवई णामें दयगुण जुत्तउ । सुहडपउ तहो. गंदणु जायउ, गुरुसज्जणहं भुअणि विक्खायउ। तहो सुउ हुउ धणवाल धरायले, परमप्पय पय पंकयरउ अलि।
एतहि तहि तहि जिणतित्थण मंतउ, महि भमंतु पल्हणपुरे पत्तउ । पत्ता- पट्टणे खंभायच्चे, धारणयरि देवगिरि ।
मिछामय विहुणंतु, गणि पत्तउ जोइणि पुरि ॥१.३ तहिं भवहिं सुमहोछउ विहियउ, सिरि रयण कित्ति पट्टे णिहियउ। महमंद साहि मणु रंजियउ, विजहिं वाइय मउ भंजियउ।
पुणु दिट्ठ उ
चंदवाडु णयर,
१.४