________________
अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक)
२४३ पूर्व जन्म का स्मरण कराया । मुनि के उपदेशों को सुन कर उसे जाति स्मरण हुआ तथा मन में विरक्ति उत्पन्न हुई और अन्त में उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई। कीर्ति घतल ने भी अपने कुकर्मों का नाश कर के मोक्ष पद प्राप्त किया।
ग्रंथ की चार सन्धियों में ७४ कड़वक है। पहली दो सन्धियों में कवि ने पुराणों की तरह काल, कुलधर, जिननाथ और देशादि का वर्णन किया है । चतुर्थ सन्धि में अन्तःपुर की रमणियों के हाव-भाव और अलंकारों का काव्यमय वर्णन मिलता है । ग्रंथ की समाप्ति कवि ने निम्नलिखित वाक्यों से की है :
"राणउ णंदउ सुहि वसउ देसु ।
जिण सासण गंदउ विगयलेसु ॥" छन्दों की नवीनता और विविधता की दृष्टि से काव्य में कोई विशेषता नहीं।
सन्मति नाथ चरित सम्मति नाथ चरित की हस्तलिखित प्रति आमेर शास्त्र भण्डार में विद्यमान है (प्र० सं० पृ० १८१-१८७) ।
रयघू ने १० सन्धियों में अन्तिम तीर्थंकर महावीर के चरित का वर्णन किया है। इस ग्रंथ में कवि ने यशः कीर्ति को अपना गुरु कहा है । कवि ने रचनाकाल का निर्देश नहीं किया।
रयधू के समय में आधुनिक काल की भारतीय आर्यभाषायें अपनी प्रारम्भिक अवस्था में साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण कर चुकी थीं। रयधू के पश्चात् अपभ्रंश की जो कतिपय अप्रकाशित कृतियाँ मिलती हैं उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
भोपाल चरित--नरसेन रचित इस कृति की हस्तलिखित प्रति आमेर शास्त्र भण्डार में उपलब्ध है (प्र० सं० पृष्ठ १७६-१७७)। हस्तलिखित प्रति का समय वि० सं० १५१२ है।
वर्द्धमान कथा--यह भी नरसेन द्वारा रचित कृति है। प्र० सं० पृ० १७०-१७१ ।
वर्द्धमान चरित-जयमित्र हल्ल ने मारह सन्धियों में तीर्थंकर महावीर की कथा लिखी है (प्र० सं० पृष्ठ १६७-१७०)। हस्तलिखित प्रति का समय वि० सं० १५४५ है। ___ अमरसेन चरित-माणिक्य राज ने सात सन्धियों में अमरसेन का चरित वर्णन किया है। रचना काल वि० सं० १५७६ है। (प्र० सं० पृष्ठ ७९-८५)।
सुकुमाल चरिउ-पूर्णभद्र ने छह सन्धियों में सुकुमाल स्वामी की कथा का वर्णन किया है। (प्र० सं० पृष्ठ १९२)
नागकुमार चरित-यह ग्रंथ भी माणिक्य राज ने वि० सं० १५७९ में रचा। (प्र० सं० पृष्ठ ११३-११६) । इसमें नौ संधियों में पूर्व कवियों द्वारा वर्णित कथा के अनुसार