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अपभ्रंश मुक्तक काव्य-१
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आनंदा-आनंद स्तोत्र डा० रामसिंह तोमर ने महाणंदि या आनंद द्वारा रचित ४३ पद्यों की छोटी सी कृति का उल्लेख किया है । कृति में प्राप्त निर्देशों से लेखक जैन धर्मावलम्बी प्रतीत होता है । रचनाकाल, देशादि अनिश्चित है। ___कृतिकार ने सांप्रदायिक भेद भावना से रहित सामान्य धार्मिक साधना की ओर निर्देश किया है। योगीन्द्र आदि अध्यात्मवादी उपदेशकों से मिलती जुलती विचारधारा ही ग्रंथ में अभिव्यक्त की गई है-बाह्य कर्मकाण्ड का निषेध, गुरु महत्ता, आत्मा की देह स्थिति आदि । एक उदाहरण देखिये--
"जिण वइसाणर कठ्ठमहि, कुसुमइ परिमलु होइ । तिहं देह मह वसइ जिव आणंदा, विरला बूझइ कोइ" ॥१३॥
दोहा पाहुड दोहा पाहुड मुनि महचंद द्वारा रचित ३३३ दोहों का एक ग्रंथ है । आमेर शास्त्र भडार में इसकी हस्तलिखित प्रति वर्तमान है। हस्तलिखित प्रति विक्रम सं० १६०२ की है अतः कवि इस काल से पूर्व हुआ होगा। कवि के विषय में अन्य कोई सूचना नहीं मिलती। ___इस ग्रंथ में दोहों के आदि अक्षर वर्णमाला के अक्षरों के क्रमानुसार हैं। इस ग्रंथ का विषय पूर्ववर्ती आध्यात्मिक विचारधारा के कवियों के समान ही, गुरु महत्त्व, विषयों का तिरस्कार, आत्म ज्ञान इत्यादि है ।
(ख) आधिभौतिक रचनायें आधिभौतिक रचनाओं से हमारा अभिप्राय उन धार्मिक रचनाओं से है जिनमें सर्वसाधारण के लिये नीति, सदाचार सम्बन्धी धर्मोपदेशों का प्रतिपादन किया गया है । इस प्रकार की आधिभौतिक उपदेशात्मक रचनाओं का विवरण नीचे दिया जाता है।
सावयधम्म दोहा' यह देवसेन की रचना है । लेखक संस्कृत और प्राकृत का भी पण्डित था । इस ग्रंथ के अतिरिक्त देवसेन ने संस्कृत में आलाप पद्धति और प्राकृत में दर्शनसार,
१. प्रो० हीरालाल जैन द्वारा संपादित, अम्बादास चवरे दिगंबर जैन ग्रंथमाला २,
वि० सं० १९८९