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अपभ्रंश-साहित्य
ही नाग कुमार की कथा का वर्णन किया गया है।"
शान्ति नाथ चरित -- यह कवि महिन्दु द्वारा रचित ग्रंथ है। इसकी रचना कवि ने योगिनी पुर (दिल्ली) में बादशाह बाबर के राज्य काल में वि० सं० १५८७ में की। इसमें चौपाई, सोरठा आदि छन्दों का प्रयोग कवि ने किया है ।"
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मृगांक लेखा चरित्र
यह ग्रंथ अप्रकाशित है। शास्त्र भंडार में विद्यमान है में इस ग्रंथ की रचना की ।
(
इसकी वि० सं. १७०० की हस्तलिखित प्रति आमेर प्र० सं० १५४ - १५५ ) । भगवतीदास ने वि० सं० १७०० यह अग्रवाल दिगम्बर जैन थे और दिल्ली के भट्टारक महेन्द्रसेन के शिष्य थे । यह हिन्दी के भी अच्छे विद्वान् थे । हिन्दी में लिखी हु इनकी ग्रंथ में केवल चार सन्धियाँ है । इसकी रचना घता किन्तु बीच बीच में दोहा, सोरठा और गावा छन्द भी
अनेक रचनायें मिलती हैं । कड़वक शैली में की गई है मिल जाते हैं ।
भगवतीदास अपभ्रंश के ज्ञात कवियों में सबसे अन्तिम कवि हैं अतः ग्रंथ का संक्षिप्त परिचय अप्रासंगिक न होगा ।
ग्रंथ का आरम्भ निम्नलिखित वाक्यों से किया गया है-ॐ नमः सिद्धेभ्यः । श्रीमद् भट्टारक श्री माहेंदसेण गुरवे नमः ।
पणविवि जिगवीरं, जागगहीरं, तिहुवण वइ रिसि राइ जई | froar विस अच्छं, सील पसच्छं, भणमि कहा ससि लेह सई ॥ ग्रंथ में कवि ने शील को अत्यधिक महत्व दिया है-
दोहा -
मुहाउ ।
जो चुक्का गुण संपदा, चुक्का कित्ति जो जजु चुक्का सील लें, चुक्का सथल सुहाउ ॥ ग्रंथ की पुष्पिकाओं में कवि ने ग्रंथ का नाम चन्द्रलेखा भी दिया है : ५
१. अमरसेन चरित और नागकुमार चरित का परिचय पं० परमानन्द जैन ने १६वीं नामक लेख द्वारा अनेकान्त वर्ष १०, किरण ४,
शताब्दी के दो अपभ्रंश काव्य पृ० १६० १६२ में दिया है ।
२. अनेकान्त वर्ष ५, किरण ६-७, पृ० १५३-१५६
३. सग दह सय संवदतीदतदां, विक्कमराइ महत्वए ।
अगहण सिय पंचमि सोमदिणे, पुण्ण वियउ अवियप्पए । ४. १४ ४. अनेकान्त वर्ष ५, किरण १-२ में पं० परमानन्द का लेख, कविवर भगवतीदास और उनकी रचनाएँ ।
५. इय सिरि चंद्दलेह कहाए, रंजिय वुह भट्टार सिरि मदिसेण सीस पंडिय भगवद् दा विरइए
१.२
चित्त
सहाए,
• इत्यादि ।