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अपभ्रंश-साहित्य विषय में कुछ सूचना नहीं दी। डा० उपाध्ये ने परमात्म प्रकाश की भूमिका में हेमचन्द्र
और परमात्म प्रकाश की भाषा की तुलना करते हुए बतायाहै कि हेमचन्द्र के भाषा सम्बन्धी कुछ नियमों का पालन योगीन्द्र के परमात्म प्रकाश में नहीं मिलता। इससे यह परिणाम निकलता है कि परमात्म प्रकाश की रचना हेमचन्द्र के शब्दानुशासन से पूर्व हुई। हेमचन्द्र ने अपने व्याकरणमें अपभ्रंश विषयक अध्याय (८. ४) में कुछ दोहे ऐसे दिये हैं जो परमात्म प्रकाश से लिये गये हैं। अतः इतना निश्चित है कि योगीन्द्र देव हेमचन्द्र से पूर्व हुए। चंड के प्राकृत लक्षण में परमात्म प्रकाश का एक दोहा उद्धृत किया हुआ मिलता है जिसके आधार पर डा० उपाध्ये योगीन्द्र का समय चंड से पूर्व ईसा की छठी शताब्दी मानते हैं। किन्तु संभव है कि वह दोहा दोनों ने किसी तीसरे स्रोत से लिया हो। इसलिये इस युक्ति से हम किसी निश्चित मत पर नहीं पहुंच सकते। भाषा के विचार से योगीन्द्र का समय ८वीं ९वीं शताब्दी के लगभग प्रतीत होता है। श्री राहुल सांकृत्यायन ने इनका समय १००० ई० माना है। ___ ग्रन्थ दो अधिकारों में विभक्त है। भट्ट प्रभाकर, संभवतः योगीन्द्र का कोई शिष्य, उनसे आत्मा परमात्मा संबन्धी कुछ प्रश्न पूछता है (प० प्र० १.८) और उन्हीं का उत्तर, देने के लिए योगीन्द्र ने इस ग्रन्थ की रचना की। प्रथम अधिकार में बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा का स्वरूप, विकल परमात्मा और सकल परमात्मा का स्वरूप, जीव के स्वशरीर प्रमाण की चर्चा और द्रव्य, गुण, पर्याय, कर्म निश्चय, सम्यग् दृष्टि, मिथ्यात्व आदि की चर्चा की गयी है। द्वितीय अधिकार में मोक्ष स्वरूप, मोक्ष फल, मोक्ष मार्ग, अभेद रत्नत्रय, समभाव, पापपुण्य की समानता और परम समाधि का वर्णन है।
योगीन्द्र बताते हैं कि परमात्मा ज्ञानस्वरूप, नित्य और निरंजन है। देह आत्मा से भिन्न है । परम समाधि में स्थित जो इस प्रकार आत्मा और शरीर में भेद करता है वही पंडित है :
"देह विभिण्णउ णाणमउ जो परमप्पु णिएइ।
परम समाहि परिठिठ्यउ पंडिउ सो जि हवेइ ॥ १.१४ वह परमात्मा देह भिन्न है किन्तु इसी देह में स्थित है। उसी की अनुभूति से पूर्व कर्मों का क्षय होता है।
१. उदाहरण के लिये
संता विसय जु परिहरइ बलि किज्जउं हउँ तासु । सो दइवेण जि मुंडियउ सीस खडिल्लउ जासु" ॥
__ प० प्र० २. १३९ संता भोग जु परिहरइ तसु कंतहो बलि की।
तसु दइवेण वि मुण्डियउं जसु खल्लिहडउं सीसु ॥ हे० च० ८.४.२८९ २. आ० ने० उपाध्ये का लेख, जोइन्दु एंड हिज अपभ्रंश वर्क्स, एनल्स आफ भंडारकर
ओरियंटल रिसर्च इंस्टिट्यूट, जिल्द १२, सन् १९३१, पृ० १६१-१६२ ।