________________
नवा अध्याय अपभ्रंश मुक्तक काव्य-- (१) धार्मिक--जैनधर्म सम्बन्धी
पिछले अध्यायों में अपभ्रंश के कतिपय प्रबन्ध काव्यों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इनमें से अधिकांश प्रबन्ध काव्य किसी तीर्थंकर, महापुरुष, धार्मिक पुरुष आदि के चरित से संबद्ध विशालकाय या लघु काय ग्रन्थ हैं। इनमें कवि का लक्ष्य चरित वर्णन के साथ साथ किसी धार्मिक भावना का प्रचार भी है। इस अध्याय में ऐसी मुक्तक रचनाओं का विवेचन प्रस्तुत किया जायगा जिनका प्रधानतया किसी व्यक्ति विशेष के जीवन के साथ संबन्ध नहीं और जिनमें धर्मोपदेश की भावना मुख्य है।
ये रचनायें कुछ तो जैनधर्म संबन्धी हैं और कुछ बौद्ध सिद्धों की वज्रयान एवं सहजयान संबन्धी। प्रथम प्रकार की रचनायें अनेक लेखकों द्वारा लिखी हुई कृतियों के रूप में उपलब्ध होती हैं, दूसरे प्रकार की स्फुट दोहों और गानों के रूप में । इन धार्मिक रचनाओं के अतिरिक्त अनेक स्फुट मुक्तक पद्य, प्राकृत ग्रन्थों में इतस्ततः विकीर्ण या व्याकरण, छन्द आदि के ग्रन्थों में उदाहरण स्वरूप में प्राप्त पद्यों के रूप में, उपलब्ध होते हैं। इनमें प्रेम, शृंगार, वीर भाय आदि किसी हृदय के तीव्र भाव की व्यंजना मिलती है ।
इन मुक्तक रचनाओं में से जैनधर्म या बौद्धधर्म सम्बन्धी रचनाओं में अपेक्षाकृत काव्य रस गौण है और स्फुट पद्यों के रूप में प्राप्त मुक्तक पद्यों में काव्य रस मुख्य है। धार्मिक रचनाओं का विवरण भाषा के विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
जैन धर्म सम्बन्धी रचनायें हमें दो रूपों में मिलती हैं-आध्यात्मिक और आधिभौतिक। आध्यात्मिक रचनाओं में लेखक का लक्ष्य जीव, आत्मा, परमात्मा का चिन्तन आदि धार्मिक तत्व विश्लेषण या धर्म के अंगों का प्रतिपादन रहा है । आधिभौतिक रचनाओं में नीति, सदाचार आदि सर्वसाधारण के योग्य लौकिक जीवन को उन्नत करने वाले उपदेशों का प्रतिपादन मिलता है। बौद्ध सिद्धों की रचनायें भी दो प्रकार की हैं एक धार्मिक सिद्धान्त प्रतिपादन करने वाली और दूसरी खंडन मंडन परक । इस प्रकार अपभ्रंश के मुक्तक काव्य का निम्नलिखित विभाजन किया जा सकता है:--.