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अपभ्रंश - खंडकाव्य (धार्मिक)
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राज का वर्णन कर कवि बतलाता है कि किस प्रकार श्रेणिक की जिज्ञासा को शांत करने के लिए गणधर नेमिनाथ की कथा का वर्णन करता है । वराडक देश स्थित द्वारवती नगरी में जनार्दन नामक राजा राज्य करता था । वहीं गुण संपूर्ण समुद्रविजय रहता था । उसकी पत्नी का नाम शिवदेवी था । उसके पुत्र उत्पन्न होने पर देवता आकर उसके बालक का संस्कार करते हैं (संधि १) । दूसरी संधि में नेमिनाथ की युवावस्था, वसंत वर्णन, जल क्रीड़ादि के प्रसंगों का वर्णन है । कृष्ण को नेमिनाथ से ईर्ष्या होने लगती है और वह उन्हें विरक्त करना चाहते हैं । नेमि का विवाह निश्चित होता है और उस अवसर पर अनेक बलि पशुओं के दर्शन से नेमि विरक्त हो जाता है । उसकी भावी पत्नी राजीमती अति दुःखित होती है । तीसरी संधि में इसी के वियोग का वर्णन है । नेमि को सांसारिक विषयों के प्रति आसक्त करने का प्रयत्न किया जाता है किन्तु सब व्यर्थ होता है । उसकी माता भी दुःखी होती है । नेमि अपने पूर्व जन्म की कथा कहता हुआ संसार
निस्सारता का प्रतिपादन करता है और वैराग्य धारण करता है । अन्तिम सन्धि में म के समवसरण का, अनेक धार्मिक प्रवचनों और नेमि की निर्वाण प्राप्ति का वर्णन है । धार्मिक और उपदेशात्मक भावना प्रधान होते हुए भी काव्य में अनेक सुन्दर और अलंकृत स्थल हैं ।
कवि की कविता के उदाहरण के लिए निम्नलिखित उद्धरण देखिये । कवि समुद्रविजय की पत्नी का वर्णन करता हुआ कहता है-
तहि गुण संपुण्ण संमुद्द विजउ, भुअदंड चंड संगाम अजउ । तहि गेोहिणि णिव सिवएविणा म, सोहइ र णं संजुत्त काम । वय राम रुणावरं वज्जदित्ति, णं सुर गिरि रेहइं कणय कित्ति । पं ससि कलाई अमियहो पयासु, णं दिणमणि पंरपण्णहि तिमिर णासु । मुवि रेह (कण कित्ति ) णं खत्तिएण, णं तिणयणु णरवइ गिरि सुएण ।
१. १४ इसी प्रकार निम्नलिखित उद्धरण में कवि ने संसार की विवशता का अंकन किया हैजसु गेहि अण्णु तसु अरुइ होइ, जसु भोजसत्ति तसु ससु ण होइ । जसु दाण छाहु तसु दविणु णत्थि, जसु दविणु तासु ऊइ लोहु अत्थि ।
जसु मयण राउ तसि णत्थि भाम, जसु भाम तासु उछवण काम ॥ ३.२ अर्थात् जिस मनुष्य के घर में अन्न भरा हुआ है उसे भोजन के प्रति अरुचि है । जिसमें भोजन खाने की शक्ति है उसके पास शस्य नहीं । जिसमें दान का उत्साह है उसके पास द्रविण नहीं । जिसके पास द्रविण है उनमें अति लोभ है । जिसमें काम का प्रभुत्व है उसके भार्या नहीं । जिसके पास भार्या है उसका काम शांत है ।
कवि ने स्थान-स्थान पर सुन्दर सुभाषितों और सूक्तियों का प्रयोग किया हैकि जीयई धम्म विवज्जिएण,
कि सुहडई संगरि कायरेण,
किं वयण असच्चा भासणेण किं पुत्तई गोत्त
विणासणेण ।