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अपभ्रंश-साहित्य
इसके अतिरिक्त कवि की चन्द्रप्रभ चरित नामक एक अन्य कृति का भी उल्लेख मिलता है । '
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कथानक -- सनत्कुमार चरित यद्यपि नेमिनाथ चरित का एक भाग है किन्तु Satara की दृष्टि से अपने आप में पूर्ण स्वतंत्र प्रतीत होता है । कवि इसके आरम्भ में जम्बु- द्वीप, भरत खंड, और गजपुर का काव्यमय भाषा में वर्णन करता है । सनत्कुमार गजपुर के राजा अश्वसेन और उनकी रानी सहदेवी के पुत्र थे । धीरे-धीरे सनत्कुमार बड़े होते हैं, अनेक शिक्षायें प्राप्त कर युवावस्था में पदार्पण करते हैं । एक दिन मदनोत्सव के अवसर पर सनत्कुमार उद्यान में एक स्त्री को देख उस पर मुग्ध हो जाते हैं । युवती भी उनके सौन्दर्य से आकृष्ट हो जाती है । दोनों मदनायतन में मिलते हैं और अपनी प्रेम भावना को अभिव्यक्त करते हैं । इसी बीच भोजराज पुत्र, जलधि कल्लोल नामक एक प्रसिद्ध घोड़ा सनत्कुमार को भेंट करता है । पवन से और मन से भी वेगवान अश्व एक दिन कुमार को लेकर दूर देश जा निकलता है । राजधानी में कोलाहल और हाहाकार मच जाता है । सनत्कुमार का मित्र अश्वसेन उसकी खोज में निकल पड़ता है । ढूंढ़ताढूंढ़ता और भटकता-भटकता अश्वसेन मानस सरोवर जा पहुँचता है । बीच के मार्ग में अनेक जंगल आते हैं, अनेक ऋतुएँ अपनी मोहकता लिये उसके आगे आती हैं । इनका कवि ने सुन्दर वर्णन प्रस्तुत किया है। मानस में अश्वसेन एक किन्नरी को मधुर कंठ से कुमार का गुणगान करते हुए सुनता है । उसी से इसे सनत्कुमार का वृत्तान्त ज्ञात होता है । इस बीच सनत्कुमार अनेक रमणियों से विवाह कर लेते हैं । कदाचित् मदनोत्सव पर वह जिस युवती पर मुग्ध हुए थे उसे एक यक्ष हर ले गया था । उन दोनों का यहाँ मेल हो जाता है और यह मिलन विवाह में सम्पन्न होता है । कुमार के इस भोग-मय जीवन के बाद उनके अनेक वीर एवं पराक्रम कार्यों का कवि ने वर्णन किया है । इसी बीच मुनि अचिमाली कुमार के पूर्वजन्मों का वृत्तान्त सुनाते हैं ।
इसके अनन्तर फिर कुमार के अनेक विवाहों का वर्णन है । इतने में ही कुमार का बाल्यसखा महेन्द्र वहाँ पहुँचता है और उसके मुख से अपने माता-पिता की दुर्दशा का समाचार सुन कर वह गजपुर लौट पड़ते हैं ।
कुमार का पिता अश्वसेन उसे राज्य देकर स्वयं विरक्त हो जाता है । समस्त पृथ्वी को वशवर्ती करते हुए सनत्कुमार पूर्ण चक्रवर्ती पद को प्राप्त करते हैं । इन्द्रादि देवता उनका अभिषेक करते हैं । उनके अमिततेज और सौंदर्य का वर्णन करते हैं । सनत्कुमार अपने रूप को अस्थायी समझ विरक्त हो जाते हैं और विरक्त हो घोर तपस्या करते हैं । देवता आ आकर उनसे आशीर्वाद लेते हैं । ऋषि सनत्कुमार लाखों वर्ष तपस्या करते हुए स्वर्ग को प्राप्त करते हैं ।
कथानक अन्य चरित काव्यों के समान वीर और शृंगार के वर्णनों से युक्त है । दोनों का पर्यवसान शान्त रस में होता है । अन्य चरित काव्यों की अपेक्षा प्रेम तत्व कुछ
१. जिन रत्न कोष, पू० ११९