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अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक)
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२२३ थट्टत्तणु मलणु विमण हराह, वर तरुणी पीण घण थण हराहं । हय हिंसणि रायणि हेलणेसु, खलि विगयणेहु तिल पीलणेसु । मन्मण्णयाले गुण गण हराह, परयार गमणु जहिं मुणि वराहं । पिय विरह वि जहिं कडु वउकसाउ, कुडिल विज्जव इहि कुंतल कलाउ ।
निम्नलिखित उद्धरण में कवि ने कृष्ण और सत्यभामा का वर्णन किया है । वर्णन में कवि की दृष्टि वस्तु के सविस्तार वर्णन पर न जाकर संक्षेप से ही सन्तुष्ट हो जाती हैघत्ता --
चाणउर विमद्दणु, देवइंणंदणु, संख चक्क सारंगधरु । रणि कंस खयंकरु, असुर भयंकर, वसुह तिखंडहं गहिय कर ॥
१.१२ रजो दाणव माणव दलइ दप्पु, जिणि गहिउअसुर पर खयर कप्पु । णव णव जोव्वण सुमणोहराई, चक्कल घण पीण पउं हराई। छण इदं विवसम वयणि याहं, कुवलय दल दोहर णयणियाहं । केऊर हार कुंडल धराह, कण कण कणंत कंकण कराहं । कपरं खोलिर पयणेउराह, सोलह सहसइं अंतेउराहं । तह मज्झि सरस ताम रस मुहिय, जा विज्जाहरहंसु केउ दुहिय। सई सव्व सुलक्षण सुस्सहाव, णामेण पसिद्धिय सच्चहाव । दाडिम कुसुमाहर सुद्धसाम, अइ वियडर मणणिरु मज्झ खाम । ता अग्ग महिसि तहो सुंदरासु, इंदाणि व सग्गि पुरंदरासु।
१.१३ सनत्कुमार चरित? (नेमिनाथ चरित) हरिभद्र रचित नेमिनाथ चरित का एक अंश सनत्कुमार चरित के नाम से प्रकाशित हुआ है । नेमिनाथ चरित के ४४३ पद्य से ७८५ पद्य तक अर्थात् ३४३ रड्डा पद्यों में सनत्कुमार का चरित मिलता है।
हरिभद्र श्वेताम्बर जैन थे। यह जिनचन्द्र सूरि के शिष्य श्रीचन्द्र के शिष्य थे। कवि ने ग्रंथ रचना अणहिल पाटन-पत्तन में वि० सं० १२१६ में की थी। हरिभद्र ने चालुक्य वंशी राजा सिद्धराज और कुमारपाल के अमात्य पथ्वीपाल के आश्रय में रह कर अपने ग्रंथ की रचना की थी। कवि ने मल्लिनाथ चरित नामक ग्रंथ प्राकृत में लिखा।
१. सनत्कुमार चरितम्-डा० हरमन जैकोबी द्वारा संपादित, जर्मनी, १९२१ ई० २. वही पृ० १५४, पद्य २१