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अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक)
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शावक के समान उन्नत स्कंध वाले और भुवन में मनोज्ञ हंस - आदित्य के समान जिन देव की वन्दना कर मंगलकारिणी जिनदत्त कथा कहता हूँ ।
कवि के यमकालंकर युत मंगलाचरण से ही उसके पांडित्य की ध्वनि मिलती है । आरम्भ में ही कवि ने अपना और अपने आश्रय-दाता का परिचय दिया है । श्रीधर से प्रेरणा पाकर भी कवि दुर्जनों से भयभीत हो अपने पूर्ववर्ती अकलंक, चतुर्मुख, कालिदास, श्रीहर्ष व्यास, द्रोण, बाण, ईशान, पुष्पदन्त, स्वयंभू, वाल्मीकि आदि कवियों का स्मरण करता है और आत्म-विनय भी प्रदर्शित करता है -
णिक्कलंकु अकलंकु चउम्मुहो, कालियासु सिरि हरिसु कयसुहो । वय विलासु कइ वासु असरिसो, दोणु वाणु ईसाणु पुप्फयंतु, सुसयंभु भल्लऊ, बालम्मीउ समई इय कईउ भो मइ ण दिट्ठिया, फुरइ केम मुहु मइ वरिट्ठिया ॥
सहरिसो । सुरसिल्लऊ ।
१. ६
कवियों के काव्य के होते हुए भी कवि अपने काव्य- निर्माण की निम्नलिखित शब्दों द्वारा सार्थकता प्रतिपादित करता है
इंद हत्थि जइ तित्थ इयरु दंति किं णउ चंदु देइ जइ अमिय
भासए, लक्खु जोयणो महि पयासये । सतेयऊ, पयडु करइ णिय वल समेयऊ - फारऊ, ऊस हीण किं णिय पयारऊ ।
१.६
कवि ने अपने काव्य में स्थल- स्थल पर अलंकृत और काव्यमय वर्णन प्रस्तुत किये हैं। वर्णनों में अनुप्रास के साथ-साथ श्लेष और यमक अलंकार का भी स्थान-स्थान पर प्रयोग किया गया है। इससे छन्द, लय युक्त होकर श्रुतिसुखद और हृदयहारी हो गये हैं । शब्द - योजना में कवि के चातुर्य से भाषा भी अत्यन्त सरल बन गई है । कवि की काव्य शैली के कुछ उदाहरण देखिये । कवि के भौगोलिक वर्णनों में भी विशेषता परिलक्षित होती है—
जहि पवर पायवा राम राम, णिवसहि अमुणिय संगाम गाम । aft fपक्क कमल कल सालि सालि, घर दारि दारि कलसालि सालि । इच्छु वरहि जिह हरिणारि णारि, वणे वणे कोलिर सुअ सारि सारि । मय सोहार हार, भूमिउज्ज वईउ सतार तार । जहि सीमंतिणिउ सकंत कंत, णायण पर वर णिवसंत जहि साहि सयल सविसाल साल, कोलंति गोट्ठि गोवाल
रयण
जह कलम सालि परिमलु सुसंतु, वावरइ वाउ वासिय उ खिज्जइ दक्खारसु गलंतु, थल पुडइणि पत्तुप्परि पिज्जइ गोवालहं वाणरेहि, जंह तह गोवार्लाहि वा
संत ।
वाल ।
१.९
दिसंतु ।
पडंतु ।
हि ।
१. १०