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अपभ्रंश - खंडकाव्य (धार्मिक)
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कृतिकार ने ५८ सन्धियों में ग्रन्थ की रचना की । सन्धियों में कड़वकों की कोई निश्चित संख्या नहीं। दूसरी सन्धि में ५ कड़वक हैं और बयालीसवीं में २९ । हस्त लिखित प्रति में १५ वीं सन्धि के बाद ३२ वीं सन्धि समाप्त होती है । १६ वीं सन्धि में ७ वें कड़वक के बाद ३२ वीं सन्धि के ८ वें कड़वक का कुछ अंश देकर आगे कड़वक चलने लगते हैं । कृत्ति में कवि ने रचना काल नहीं दिया किन्तु 'सुदंसण चरिउ' के रचना काल से कल्पना की जा सकती है कि इस ग्रन्थ की रचना भी कवि ने वि० सं० ११०० के लगभग की होगी ।
यद्यपि इस ग्रन्थ में अनेक विधि विधानों और आराधनाओं का उल्लेख एवं विवेचन है तथापि ग्रन्थ की पुष्पिकाओं में कृतिकार ने इसे काव्य कहा है । "
कृतिकार ने अपने से पूर्ववर्ती और समकालीन अनेक ग्रन्थकारों एवं कवियों का उल्लेख किया है । इनके नाम निम्नलिखित हैं
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मनु याज्ञवल्क्य, वाल्मीकि, व्यास, वररुचि, वामन, कालिदास, कौतूहल, बाण, मयूर, जिनसेन, वारायण, श्रीहर्ष, राजशेखर, जसचन्द्र, जयराम, जयदेव, पालित ( पादलिप्त), पाणिनि, प्रवरसेन, पातंजलि, पिंगल, वीर सेन, सिंहनंदी, गुणसंह, गुणभद्र, सामंतभद्र, अकलंक, रुद्र, गोविंद, दंडी, भामह, भारवि, भरह, चउमुह, स्वयंभू, पुष्पदन्त, श्रीचन्द्र, प्रभाचन्द्र, श्री कुमार और सरस्वती कुमार ।
१. मुणिवर णयनंदी सण्णिबद्धे पसिद्धे सयल विहि णिहाणे एत्थ कव्वे सुभव्वे । अरिह पमुहँ सुत्तु वृत्तु माराहणाए पभणिउं फुडू संधी अट्ठावण समोति ॥
५८वीं सन्धि २. मणु जण्ण वक्कु वम्मीउ वासु, वररूइ वामणु कवि कालियासु । कोहल बाणु मऊरु सुरु, जिणसेण जिणागम कमल सूरु । वारायणवरणाउ विवियददु, सिरि हरिसु राय सेहरु गुणददु जसइंषु जए जयराय णामु, जय देउ जणमणाणंद कामु । पालितउ पाणिणि पवरसेणु, पायंजलि पिंगलु वीरसेणु । सिरि सिंहनंदि गुणसंह भद, दु, गुणभवदु गुणिल्लु समंतभद हु । अकलंकु विसम वाईय विहंडि, कामददु भम्मुइ भारहि भरहुवि महंतु, चउमुहु
रुद्दु गोविंदु दंडि । सयंभु कइ पुफ्फयंतु ।
घता
णंदि मणोहरु । विलासिणि सेहरु |
स० वि० ति० का० १.५
सिरि चंदु पहाचंदु वि विबुह, गुण गण कइ सिरि कुमार सरसइ कुमर, कित्ति