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अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक)
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कर अपनी नववधू सहित वह फिर रतिवेगा से आ मिले। __अब उन्होंने चोल, चेर और पांडु नरेशों की सम्मिलित सेना का सामना किया
और उन्हें हरा कर प्रण पूरा किया। उनके मस्तकों पर पैर रखते ही उन्हें उनके मुकुटों पर जिन प्रतिमा के दर्शन हुए। यह देख राजा को बहुत पश्चात्ताप हुआ। उन्होंने राज्य पुनः उन्हें लौटाना चाहा पर वे स्वाभिमानी द्रविड़ नरेश यह कह कर तपस्या करने चले गये कि अब हमारे पुत्र पौत्रादि ही आपकी सेवा करेंगे। वहाँ से वह फिर तेरापुर आये । यहां कुटिल विद्याधर ने मदनावली को लाकर सौंप दिया। वह फिर चम्पा पुरी आकर राज सुख का आनन्द लूटने लगे।
एक दिन वनमाली ने आकर समाचार दिया कि नगर के उपवन में शील-गुप्त नामक मुनिराज पधारे हैं। राजा पुर-परिजन सहित अत्यन्त भक्तिभाव से उनके चरणों में उपस्थित हुए और अपने जीवन सम्बन्धी अनेक प्रश्न पूछे-मुनिराज ने पूर्व जन्म के उल्लेख के साथ उनका यथोचित समाधान किया। सब वृत्तान्त सुन कर करकंडु को वैराग्य हो गया और वह अपने पुत्र वसुपाल को राज्य देकर मुनि हो गये। उनकी माता पद्मावती भी अजिंका हो गई और उनकी रानियों ने भी उन्हीं का अनुसरण किया । करकंडु ने घोर तपश्चर्या करके केवल ज्ञान और मोक्ष प्राप्त किया।
चरित नायक की कथा के अतिरिक्त कथा के अन्दर नौ अवान्तर कथाओं का वर्णन है । प्रथम चार द्वितीय संधि में वर्णित हैं। इनमें क्रमश: मंत्र शक्ति का प्रभाव, अज्ञान से आपत्ति, नीच संगति का बुरा परिणाम और सत्संगति का शुभ परिणाम दिखाया गया है। पांचवीं कया, एक विद्याधर ने मदनावली के विरह से व्याकुल करकंडु को यह समझाने के लिए सुनाई, कि वियोग के बाद भी पति पत्नी का संमिलन हो जाता है । छठी कया पांचवीं कथा के अन्तर्गत एक अन्य कथा है। सातवीं कथा (७. १-४) शुभ शकुन का फल बताने के लिए कही गई है। आठवीं (८. ९-१६) कथा पद्मावती ने समुद्र में विद्याधरी द्वारा करकंडु के हरण किये जाने पर शोकाकुला रतिवेगा को सुनाई । नौंवों कथा आठवीं कथा का प्रारम्भिक भाग है जो एक तोते की कया के रूप में स्वतन्त्र अस्तित्व रखती है। वह नौंवों कथा मुनिराज ने करकंडु की माता पद्मावती को यह बताने के लिए सुनाई कि भवान्तर में नारी अपने नारीत्व का त्याग भी कर सकती हैं।
इनमें से कुछ कथाएँ तत्कालीन समाज में प्रचलित होंगी या कवि की अपनी कल्पना होगी किन्तु अनेक कथाएँ संस्कृत साहित्य में उपलब्ध होती हैं। आठवीं कथा को पढ कर बाण कृत कादम्बरी के वैशम्पायन शुक का स्मरण हो आता है।
ये कथाएँ मूल कथा के विकास में अधिक सहायक नहीं हो पातीं। किसी भी घटना को समझाने के लिए एक स्वतन्त्र कथा का वर्णन, पंचतंत्र के ढंग पर, या अन्य आख्यायिकाकारों की शैली पर, इस ग्रंथ में उपलब्ध होता है । इन कथाओं के आधार पर कवि ने कथा वस्तु को रोचक बनाने का प्रयत्न किया है । वस्तु में रसोत्कर्ष, पात्रों की चरित्रगत विशेषता और काव्यों में प्राप्य प्राकृतिक दृश्यों के वर्णन के अभाव को, कवि ने भिन्न