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अपभ्रंश-साहित्य का धनश्री के दान से खीझना और उससे ईर्ष्या करना, पति द्वारा अपमानित होने पर विक्षुब्ध होना, समुद्रदत्त और पद्मश्रीका पूर्वानु राग और उसका विकास, समुद्रदत्त से परित्यक्त पद्मश्री का दुःखी होना, उसे छोड़ समुद्रदत्त का कांतिमती नामक युवती से विवाह करना सब स्वाभाविक प्रसंग हैं।
रस-काव्य में रति, शोक और निर्वेद भावों के ही अधिक प्रसंग हैं । शृङ्गार रस के संयोग और वियोग दोनों पक्ष अंकित किये गये हैं । प्रेम, स्त्री-पुरुष के पारस्परिक दर्शन के कारण स्वाभाविक रूप में उत्तरोत्तर विकसित होता हुआ दिखाई देता है। ___सौन्दर्य वर्णन में कवि धनश्री के रूप का वर्णन करता हुआ उसके अंगों की शोभा का वर्णन करता है-- मिउकसिण-वाल
संगय-निलाड। वयणारविंद
उवहसिय-चंद। पंकय-दलच्छि
नं भुयण-लच्छि । कुंडल-विलोल
उज्जल-कवोल। विप्फुरिय-कंति
सिय-दसण-पंति । विवाह (रोट्ठ)
वर-कंव-कंठ। थण-हार-तुंग
तण-तिवलिभंग। वित्थिन्न-रमणि
मंथरिय-गमणि। आयंव-हत्य .
लक्खग-पसत्य। जिय-वाल-रंभ
पीणोल्-थंभ। नव-कणय-गोरि
मुणि-चित्त-चोरि। सोहग्ग-खाणि
निर महुर-वाणि ॥
रूप-वर्णन परंपरा भक्त है। कवि की दृष्टि धनश्री के अंगों तक ही पहुँचती है । अन्तिम पत्ता द्वारा कवि उसके सौन्दर्य का प्रभाव भी प्रदर्शित करता है ।
रइ-रूओहामिणि सुंदर कामिणि नवजोवण-सज्जिय रहहु । खंडिय-सुर-दप्पहु गुरु-माहप्पहु हत्थि भल्लि नं वम्महु ॥
१. ४. ५७ अर्थात् रति के रूप का उपहास करने वाली वह सुन्दरी, नव यौवन रूपी सज्जित रथ वाले, देवताओं के दर्द को खंडित करने वाले अतिशय माहात्म्य वाले काम देव के हाथ में मानो भाले के समान थी।
धनपाल ने भविसयत कहा में एक स्त्री के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए इसी भाव को ऐसे ही शब्दों में अभिव्यक्त किया है-- "णं वम्मह भल्लि विंधण सील जुवाण जणि"
म० क० ५.७. ९ " इसी प्रकार पद्मश्री के रूप वर्णन में (२. ३) उसके अंगों के सौंन्दर्य का वर्णन