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अपभ्रंश-साहित्य णाय वियारणो वि ण मयाहिउ, सायरो वि णउ सशस खोहिउ । चउरासु वि जो अक्ख रहिय कर, जो विवक्ख वहण वि णउ सिरिहरु।
णीसु वि कमलछि आलिंगणु, सुगुणु धणु वि ण परम्मुह मग्गणु। २.४ अर्थात् जो अभिनव मेघ होते हुए भी जलमय न था अर्थात् जो अभिनव-मेवा युक्त था और जड़ न था । जो चन्द्र होता हुआ भी दोषा-रात्रि-रहित था एवं मृग अयवा अमृत रहित था अर्थात् यह सोम वंशी था, दोषरहित एवं मद रहित था। जो सूर्य होते हुए भी कुवलयों-कुमुदों को संतापित करने वाला न था अर्थात् जो शूर और कुवलय-पृथ्वी मंडल को पीड़ित करने वाला न था। जिसने रजनीचरों (रमणियरु) को छोड़ा था किन्तु विभीषण न था अर्थात् जिसने रज समूह का परित्याग किया था और जो भयंकर न था। जो विवुधों-देवताओं-का पति (विबुहवइ) होते हुए भी सुरों को न देखता था अर्थात् जो विद्वानों का स्वामी--रक्षक-था और सुरासेवी न था। जो अर्जुन होते हुए गुरु द्रोणाचार्य के प्रतिकूल न था अर्थात् जो ऋजु गुणों से युक्त था और गुरुजनों के प्रतिकूल न था। जो नर ज्येष्ठ-अर्जुन का ज्येष्ठ भाई (युधिष्ठिर) होते हुए भी धृतराष्ट्र को चाहता था अर्थात् जो पुरुषों में श्रेष्ठ था और ध्वजा एवं राष्ट्र का इच्छुक था। जो बाहुबली होते हुए भी भरत से ज्येष्ठ था अर्थात् जो भुजशाली था और भरत क्षेत्र में उत्कृष्ट था । जो राम होते हुए भी हलधर के बिना था अर्थात् जो अभिराम-सुन्दर था और हलिक न था। जो शत्रुपक्ष के लिए अग्निरूप था किन्तु अविनीत न था अर्थात् जो उत्कृष्ट वंश में अग्रणी था और नम्र था। जो स्वामी कात्तिकेय था किन्तु ईश्वर, महादेव से संगत न था अर्थात् जो मनुष्यों का स्वामी था और नीति, लक्ष्मी (ई) एवं काम (सर) का सखा था। जो सारंग होते हुए भी पुण्डरीक-व्याघ्र-के सम गामी था अर्थात् जो सुडौल अंगों वाला था या लक्ष्मी (सा) की रंगभूमि के समान था और पुण्डरीक-छत्र जिसके सम्यक् रूप से आगे रहता था। जो नागों-हाथियों का विदारण करने वाला था किन्तु मृगाधिप (मयाहिउ) न था अर्थात् जो न्याय से विचार करता था और मदाधिक न था। जो सागर था किन्तु मत्स्यों से क्षोभित न था अर्थात् जो आकर युक्त था अथवा लक्ष्मी (सा)का आकर था और काम से क्षोभित न था। जो चतुरास्य-ब्रह्मा-होते हुए भी अक्ष जयमाला से शून्य कर वाला था। अर्थात् जो चतुर मुख वाला था और अक्ष,पासे आदि से शून्य हाथवाला था । जो गरुड (वि पक्ष) वाहन होते हुए भी श्रीधर-विष्णु-न था अर्थात् जो विपक्षियों-शत्रुओं का हन्ता था और नय-नीति-से लक्ष्मी का धारण करने वाला था। जो निःस्व-दरिद्र होते हुए भी कमलाक्षि-सुन्दरियों से आलिंगित था अर्थात् जो नरेश (न-ईश) था और विक्रम एवं लक्ष्मी से आलिंगित था। जो गुण-प्रत्यंचा-सहित धनुष वाला था किन्तु पराङ्मुख बाण वाला न था अर्थात् जो गुण और धन से युक्त था एवं याचकों को पराङ्मुख न करता था।
इसी प्रकार निम्नलिखित वंशस्थ छन्द में कवि ने वन की तुलना श्लिष्ट पदों द्वारा एक साथ ही नृप और राम से की है । कवि वन का वर्णन करते हुए कहता है--