________________
अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक)
वसत्थ
महासरं पत्र विसेस भूसियं सुहालयं सक्कइ विद सेवियं । सुलक्खणा लंकरियं सुणाययं
णिउव्व रामुव्व वणं विराइयं ॥ ७.८ अर्थात् वन नृप के समान और राम के समान शोभित था। क्योंकि तीनों महासर थे। वन-महान सरोवरों से युक्त, नृप--महान् स्वर वाला और राम--महान् शर वाला । तीनों पत्र विसेस भूसिय थे। वन-अनेक प्रकार के पत्रों से भूषित अथवा पत्रों, पक्षियों और सर्पो से व्याप्त पृथ्वी से युक्त, नृप--राज्योचित विशेष पत्रों से भूषित और राम-पत्र विशेष से उपलक्षित भू रूपी श्री-शोभा-वाला। तीनों सुहालय थे । वनसुखदायक, नृप--शुभ-सुन्दर अलकों वाला और राम-शोभन भाल वाला। तीनों सक्कइ विंद सेविय थे । वन--अनेक कपि वृन्द से युक्त, नृप-सत्कवि वृन्द से सेवित
और राम भी अनेक कपिवृन्द सेवित था। तीनों सुलक्खवणालंकरिय थे । वन-सुन्दर लक्ष्मण नामक वृक्षों से अलंकृत, नप--सुन्दर लक्षणों से अलंकृत और राम-सुन्दर लक्ष्मण से अलंकृत थे। इसी प्रकार तीनों सणायय थे । वन--सुंदर नागों से युक्त, नृप-सुन्दर न्याय कर्ता और राम-एक सुन्दर नायक था।
निम्नलिखित मगध देश का वर्णन भी श्लिष्ट और अलंकृत शैली में एवं सरस भाषा में कवि ने अंकित कियाहै। वर्णन में कवि की दृष्टि इस भौगोलिक प्रदेश की नदियों, इक्षुवणों, उपवनों, राजहंसों और उत्कृष्ट राजाओं आदि विस्तृत विषयों तक पहुंच गई । देखियेघत्ता
जहि गइउ पऊहरिउ, दीसहि मंथर गमणिउं । णाहहो सायरहो सलोणाहो, जंतिउ गं बररमणिउं ॥ १.२ जहि पंडु छुवणई कयहरिसइं, कामिणि वयणाइव अइसरसई।
उववणाइं सुरमण कय हरिसई, भद्द साल गंदणवण सरिसइं। कमल कोसे भमरहिं महु पिज्जइ, महुयराहं अह एहउ छज्जइ । जहिं ससरासण सोहिय विग्गह, कय समराली केलि परिग्गह। रायहंस वर कमलु क्कंठिय, विलसहिं बहुविह पतं परिट्ठिय ।'
सु. च. १.३ प्रकृति वर्णन-प्राकृतिक दृश्यों के वर्णन में कवि ने प्रायः प्रसिद्ध उपमानों का प्रयोग किया है । यह वर्णन अधिकतर उद्दीपन के रूप में ही दिखाई देता है । नदी, वसन्त ऋतु, १. पऊहरिउ--पयोघर, पय भरित । कामिणि वयणा-कामिनी वचन या वदन ।
भद्दसाल-सुन्दर शाल वृक्ष या सुन्दर शालायें। रायहंस--राजहंस, श्रेष्ठ