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अपभ्रंश-खंड काव्य (धार्मिक)
और अतिमानव (वितर) का यह युद्धप्रसंग कथा प्रवाह में किसी प्रकार का योग नहीं देता। रानी अभया और कपिला का सुदर्शन के प्रति प्रेम-प्रसंग तो सुदर्शन के चरित्र की दृढ़ता प्रदर्शन करने के लिए आवश्यक समझा जा सकता है किन्तु चौथी सन्धि में अनेक वर्गों और अनेक प्रान्तों की स्त्रियों का वर्णन, उनका स्वभाव प्रदर्शन और उनका वर्गीकरण कथाप्रवाह में किसी प्रकार का योग नहीं देता । धार्मिक प्रवृत्ति के कारण कवि ने बीच बीच में उपदेश भी दे डाले । प्रबंधात्मकता की दृष्टि से इनकी आवश्यकता न थी।
नायक-इस काव्य का नायक संस्कृत काव्यों की परंपरा के विपरीत एक वणिक् पुत्र है । संस्कृत काव्यों के अन्य तत्व जहाँ अपभ्रंश काव्यों में शिथिल हुए वहाँ नायक संबन्धी तत्व भी शिथिल हो गये । क्षत्रियकुलोत्पन्न धीरोदात्त गुण विशिष्ट राजा नायक नहीं अपितु एक सामान्य मध्यमश्रेणी का पुरुष नायक है। इस दृष्टि से साधारण श्रेणी का होते हुए भी नायक अनेक गुणों से युक्त है । वह अत्यन्त सुन्दर, दृढव्रती और आचारनिष्ठ मानव है । मानव स्वभाव सुलभ प्रेम के वशीभूत हो वह सागरदत्त की पुत्री मनोरमा की ओर आकृष्ट हो जाता है। ___ वर्णय-विषय--कवि ने महाकाव्यों की परंपरा के अनुकूल मानव का, नारी का, भौगोलिक प्रदेशों का, प्राकृतिक दृश्यों आदि का अलंकृत भाषा में वर्णन किया है। कवि ने स्वयं इस बात की घोषणा की है कि सुकवि के सालंकार काव्य में अपूर्व रस होता है।'
नयनंदी अपभ्रंश के प्रकांड पंडित थे। इन के पाण्डित्य का उदाहरण काव्य की प्रत्येक सन्धि के प्रत्येक कडवक के पद-पद में दिखाई देता है। बाण और सुबन्धु ने जिस क्लिष्ट और अलंकृत-पदावली का गद्य में प्रयोग किया नयनंदी ने उसी का पद्य में सफलतापूर्वक निर्वाह किया । उदाहरण के लिये निम्नलिखित धाड़ीवाहन राजा का अलंकृत वर्णन देखिये
जो अहिणव मेहु विणउ जडमउ, जो सोमु वि अदोसु उज्झियमउ । सूरु वि णउ कुवलय संतावणु, वज्जिय रयणियरु वि णउ विहीसणु। विवुहवइ वि जो सुर ण णिहालउ, अजुणगुणु वि ण गुरु पडिकूलउ । पर जेटु वि इछिय धयरट्ठउ, बाहुवलि वि जो भरह गरिट्ठउ । जो रामु वि हलहरु विण भणियउ, परवंसग्गि वि णउ अविणीयउ। जो सामि वि उ ईसर संगउ, सारंगु वि पुंडरिय समग्गउ ।
.. १. णो संजादं तरुणि अहरे विदुमारत्त सोहे।
णो साहारे भमिय भमरे णेव पुंडुच्छु दंडे । णो पीऊसे हले सहिण तं चंदणे. व चंदे। सालंकारे सुकइ भणिदे जं रसं होदि कव्वे ॥ ३.१ .