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छठा अध्याय
अपभ्रंश महाकाव्य संस्कृत में काव्यों के वर्णनीय विषय प्रायः रामायण, महाभारत या पुराणों से लिए गए । अधिकांश काव्य राम कथा, कृष्ण कथा या किसी पौराणिक कथा को लेकर लिखे गए । इन विषयों के अतिरिक्त इस प्रकार के काव्य गन्थ भी लिखे गये जिनमें किसी राजा के शौर्य या विजय का वर्णन हो या किसी राजा की प्रेम कथा का विस्तार हो। विक्रमांक देव चरित, कुमारपाल चरित और नव साहसांक चरित इसी प्रकार के काव्य है। बौद्ध और जैन कवियों ने अपने-अपने धर्म प्रवर्तकों और महापुरुषों के चरित वर्णन को भी काव्य का विषय बनाया। अश्वघोष रचित बुद्ध चरित, कनकदेव वादिराज कृत यशोधर चरित, हेमचन्द्र रचित त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित आदि इसी प्रकार के काव्य हैं।
प्राकृत में भी प्रबन्ध काव्यों का विकास कुछ तो संस्कृत के ढंग पर हुआ और कुछ स्वतन्त्र रूप से । अनेक कवियों ने संस्कृत के समान प्राकृत में भी अपनी प्रबन्ध-चातुरी दिखाने का प्रयत्न किया। प्राकृत के भी अधिकांश काव्य राम और कृष्ण की कथा को लेकर ही रचे गये हैं। प्रवरसेन का सेतुबन्ध या रावण वध, श्री कृष्णलीलाशुक का श्री चिह्न काव्य (सिरि चिंध कव्व) क्रमशः राम कथा और कृष्ण कथा पर लिखे गये प्राकृत काव्य हैं। राम और कृष्ण की कथा के अतिरिक्त वाक्पतिराज का गौड वहो इन कथाओं से भिन्न एक राजा के जीवन को लेकर रचा गया। कौतूहल कृत लीलावती कथा २ एक प्रेमाख्यान है।
शैली और काव्य रूप की दृष्टि से प्राकृत प्रबंध काव्यों में से कुछ तो ऐसे मिलते हैं जिनमें संस्कृत की परंपरा अविच्छिन्न रूप से प्रवाहित होती हुई दृष्टिगोचर होती है किन्तु इनके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी प्रबन्ध काव्य प्राकृत में लिखे गये जिनका संस्कृत की परंपरा से अलग होकर विकास हुआ। इनमें हमें संस्कृत-छंदों से भिन्न छंद, एवं
१. डा० आ. ने. उपाध्ये भारतीय विद्या, भाग ३, अंक १, १९४१ ई. पृष्ठ ६, संस्कृत के द्वयाश्रय काव्यों के समान कवि ने १२ सर्गों में गाथा छंद में श्री कृष्ण की लोला और त्रिविक्रम के प्राकृत सूत्रों की व्याख्या की है। र २. डा० आ० ने० उपाध्ये द्वारा संपादित, भारतीय विद्या भवन, बम्बई से १९४९ ३. में प्रकाशित।