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अपभ्रंश महाकाव्य
ग्रन्थ का आरम्भ निम्नलिखित वन्दना से होता हैपत्ता--जे काय बायमणे निछिरिया, ने काम कोहलय तिरिया।
ते एक्कमणेण सयंभुएण, बंदिय गुरु परमायरिय॥ इसके अनन्तर निम्नलिखित संस्कृत का मालिनी पद्य मिळता है
भवति किल विनाशो दुर्गतः संगतानामिति वदति जनो यं सर्वमेतद्धि मिथ्या। उरगफणिमणीनां कि निमित्तेत राज
न्न भवति विषदोषो निम्विषो वा भुजंगः ॥ १.१. ___ कवि ने राम कथा की सुन्दर नदी से तुलना की है और इसके लिये एक सुन्दर रूपक बांधा है। इसके पश्चात् (१.३) कवि ने आत्म विनय और अज्ञता का प्रदर्शन करते हुए सज्जन दुर्जन स्मरण की परिपाटी का भी पालन किया है।
रामकथा का आरम्भ लोक प्रचलित कुछ शंकाओं के समाधान के साथ होता है। मगध नरेश श्रेणिक जिनपर से प्रश्न करते हैं।
जह राम हो तिहुयणु उयरि माइ, तो रामणु कहि तिय लेवि जाह। अण्णु विसरवूसण समरि देव, पहु जुज्झइ मुज्वाइ भिच्चु केव।। किह वाणर गिरिवर उध्वहंति, वंषिवि मयरहरू समुत्तरति । किह रावण दहमुहु बीसहत्यु, भमराहिय भुव बंधण समत्य ॥ १.१. अर्थात् यदि राम के उदर में तीनों भुवन हैं-वह इतने शक्तिशाली हैं तो कैसे रावण उनकी स्त्री को हर ले गया ? • • कसे वानरों ने पर्वतों को उठाया, समुद्र को बांध कर उसे पार किया ? कैसे दशमुख और बीस हाथों वाला रावण अमराधिप इन्द्र को बांधने में समर्थ हुआ? ___ कथा के प्रधान पात्र सब जिन भक्त हैं । वर्णन की दृष्टि से काव्यानुरूप अनेक सुन्दर से सुन्दर वर्णन इसमें उपलब्ध होते हैं।
६.१ में कवि ने चौसठ सिंहासनों एवं राजाओं का संस्कृत-शब्द-बहुल भाषा में वर्णन किया है। इसी प्रकार १६:२ में तीन शक्तियों, चार विद्याओं, संधि विग्रह यानादि और अठारह तीर्थादि का संस्कृत में विवेचन किया है । स्थान-स्थान पर संस्कृत पद्यों का भी प्रयोग मिलता है।
तावद्गजति तुंगाः करट पट?भाजान पीरा गंडा ?? मातंग दंत क्षत गुरु गिरयो भग्न नाना मौधा (:)। लोलो द्धृत लताने निज युवति करैः सेव्यमाना यथेष्टं
यावन्नो कुंभि कुंभ स्थल दलन पटुः केसरी संप्रयाति ॥ १७.१ महाकाव्य के अनुकूल अनेक ऋतुओं का वर्णन कवि ने किया है । पावस में मेघों के
१. राम कहा सरि एह सोहंती प.च.१.२