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अपभ्रंश महाकाव्य
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भडा के वि दुप्पच्छ आरत्तणेत्त । भडा के वि दोखंड गत्ता पडता । भड़ा के वितिक्aह खग्गेहि छिण्णा भडा के वि मुट्ठिक्क चप्पेड देता । भडा के वि जुज्झति केसागण ।
भडा के वि जीवेण मुक्का विगत्ता । भडा के बि वीसंति सम्मेण चत्ता । भडा के वि जुज्झे ललंता वियंत । भडा के वि दुग्वट दंतेहि भिष्णा । भडा के वि रोमंचगतं भमंत । भडा के वि वग्गंति वाहत्यलेण ।
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अभिट्ट कोह पूरिया विरुद्ध पुब बइरिया । हकति प्रतिवह हरिसीयाल बुक्कहिं । महाभटा धणुद्धरा सुतिक्ख मिल्लाह सरा । विभिण्ण सेल्ल दारुणा, पडलि कायरा जणा ।
बजंति तूर भीसणा, डरंति कायरा जणा ।
महा चंड चित्ता, भडा छिण्णागत्ता । धनू बाण हत्था, सकुंता समत्था । पहारंति सूरा, ण भज्जंति धीरा । सरोसा सतोसा,
सहासा स आसा ॥
८९. १२.
९०. २
९०.४
अर्थात् रथिक रथ की ओर, गज गज की ओर दौड़ा । धानुष्क धानुष्क की ओर भागा । घोड़ा घोड़े से निश्शस्त्र निश्शस्त्र से, और असि निर्भय हो कवच से जा भिड़ी । वाद्य जोर जोर से बज रहे हैं, घोड़े हिनहिना रहे हैं और हाथी चिंघाड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं ।
.....'मारो मारो' सैनिक चिल्ला रहे हैं ? पद्दलित धूलि आकाश में फैल रही है । शीघ्र ही पिशाच घिर जाते हैं । शृगाल भयंकर शब्द कर रहे हैं । रक्तरंजित योद्धा इतस्ततः घूम रहे हैं, शस्त्र भिन्न हो रहे हैं, हाथी और घोड़े तलवारों से छिन्न हो रहे हैं, राजा द्विधा विभक्त हो गिर रहे हैं.....
योद्धा विद्ध हो रहे हैं, भट मूर्छित हो रहे हैं, कोई भालों के प्रहार से विदीर्ण हो रहे हैं, कोई खड्ग से छिन्न भिन्न हो रहे हैं, जीवन की आशा को छोड़ कायर भाग रहे हैं ......
कोई योद्धा प्राण-विमुक्त हो रहे हैं, कोई धर्म से परित्यक्त दिखाई दे रहे हैं, कोई आरक्त नेत्र और दुष्प्रेक्ष्य हो रहे हैं, कोई योद्धा तीक्ष्ण तलवार से छिन्न हो रहे हैं, कोई रोमांचित गात्र से घूम रहे हैं, कोई घूंसा और चपेड़ लगा रहे हैं, कोई बाहु सुख कर रहे हैं, कोई बाल पकड़ कर घसीट रहे हैं ।
प्रचण्ड क्रोध से भरे हुए, पूर्व वैर से परस्पर विरोधी योद्धा एक दूसरे को लल-