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.. अपभ्रंश-साहित्य जो भी विवेचन यहाँ प्रस्तुत किया गया है वह अपभ्रंश साहित्य के महाकाव्य का रूप दिखाने के लिए पर्याप्त है। अपभ्रंश महाकाव्य का रूप, उसकी प्रवृत्तियाँ, उसकी विशेषताएँ इतने अध्ययन से ही स्पष्ट हो सकेंगी, ऐसा लेखक का विश्वास है । इन महाकाव्यों में अनेक ऐसे महाकाव्यों का अन्तर्भाव न हो सका जिन्हें कवियों ने तो महाकाव्य कहा है किन्तु विषय प्रतिपादन की दृष्टि से वे महाकाव्य नहीं माने जा
सकते।'
१. उदाहरण के लिये श्रुतकोति ने अपने परमेष्ठि प्रकाश सार को महाकाव्य
कहा है किंतु सारे ग्रंथ में धार्मिक विवेचन ही मुख्य रूप से मिलता है। प्रन्थ महाकाव्य प्रतिपादित लक्षणों से शन्य है। इसी प्रकार अमरकीत्ति ने अपने छक्कमोवएस (षट्कर्मोपदेश) नामक ग्रन्थ को महाकाव्य कहा है। कथानक और कवित्व की दृष्टि से यह भी महाकाव्य नहीं कहा जा सकता।