________________
१३०
अपभ्रंश-साहित्य
णाय कुमार चरिउ'(नागकुमारचरित) यह कवि पुष्पदंत द्वारा रचा हुआ है संधियों का खंड काव्य है। कवि सरस्वती की वंदना से ग्रंथ का आरम्भ करता है। ग्रंथ मान्य खेट के राजा के मंत्री नन्न की प्रेरणा से लिखा गया। कवि मगध देश, राजगृह और वहाँ के राजा श्रेणिक का काव्यमय शैली में वर्णन कर बतलाता है कि एक बार तीर्थंकर महावीर राजगृह में गये और वहाँ राजा श्रेणिक ने उनकी सेवा में उपस्थित हो श्री पंचमी व्रत का माहात्म्य पूछा। महावीर के शिष्य गौतम उनके आदेशानुसार व्रत से संबद्ध कथा कहते हैं।
कथानक-प्राचीन काल में मगध देश में कनकपुर नाम का एक नगर था। वहाँ जयन्धर नाम का राजा अपनी स्त्री विशालनेत्रा और पुत्र श्रीधर के साथ राज्य करता था। एक दिन वासव नामक एक व्यापारी अपनी व्यापार सम्बन्धी यात्रा से लौटता हुआ कनकपुर में अनेक उपहारों के साथ राजा की सेवा में उपस्थित होता है। उन बहुमूल्य उपहारों में सौराष्ट्र के, गिरि नगर के राजा की लड़की का भी एक चित्र था। राजा उस चित्र को देख उस लकड़ी पर मुग्ध हो जाता है और पूछने पर उसे पता चलता है कि गिरनगरराज उस लड़की का विवाह राजा जयन्धर से करना चाहता है। यह समाचार सुन राजा अपने मंत्री को और उस व्यापारी को अनेक उपहारों के साथ गिरि नगर भेजता है। वे राजकुमारी को कनकपुर लाते हैं और धूमधाम से विवाह संपन्न होता है (१)
राजा दोनों रानियों के साथ क्रीडोद्यान में जाता है । नवागता वधू पृथ्वी देवी अपनी सपत्नी के वैभव को देख आश्चर्यान्वित हो जाती है और कहती है
सुक्खई दुज्जणहं णिय सज्जणहं दुक्खइं उपरि पलोट्टई। जेहिं णिहालियई णयणई पियई ताई कि ण हलि फुट्टइं॥
हे सखि ! जिन नयनों ने दुर्जनों के ऊपर पतित सुखों और निज सज्जनों के ऊपर पतित दःखों को निहारा वे प्रिय नेत्र क्यों न फट गये? ईर्ष्या से पृथ्वी देवी उद्यान में न जाकर जिन मंदिर में जाती है । वहाँ मुनि पिहिताश्रव उसे धर्मोपदेश देते हैं और भविष्य वाणी करते हैं कि उसके एक पुत्र होगा। समयानुसार पुत्र उत्पन्न होता है । जन्मोत्सव मनाया जाता है । माता-पिता जिन मंदिर में जाते हैं और द्वार को बंद पाते हैं। पुत्र के चरण स्पर्श से दरवाजा खुल जाता है। जब वे दोनों जिन की पूजा में लीन थे और स्त्रियां क्रीडोद्यान में बच्चे के साथ थीं, अकस्मात् बालक एक कुएँ में गिर जाता है । चारों ओर शोर मच जाता है। पुत्र के लिए माँ भी कुएं में कूद पड़ती है। वहाँ नाग बालक की रक्षा करता है अतएव उसका नाम नाग कुमार रखा जाता है (२)।
१. प्रो० हीरालाल जैन द्वारा संपादित, बलात्कारगण जैन पब्लिकेशन सोसाइटी
कारंजा, बरार से सन् १९३३ में प्रकाशित ।