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अपभ्रंश - साहित्य
( प्र० सं० पृ० १०० ) । वीर कवि ने इस ग्रंथ में अन्तिम केवली जम्बू स्वामी के जीवन चरित्र का ११ संधियों में वर्णन किया है। ग्रंथ रचना में कवि को एक वर्ष लगा । इस बीच कवि का समय अनेक राजकार्य, धर्मार्थ काम गोष्ठियों में विभक्त होता था । कवि के पिता का नाम देवदत्त और माता का नाम संतुआ था । कवि ने अपने तीन छोटे भाइयों, अनेक स्त्रियों और एक पुत्र का निर्देश किया है । कवि ने इस ग्रंथ की रचना माघ शुक्लपक्ष दशमी वि० सं० १०७६ में की थी। कवि ने अपने से पूर्व के अनेक कवियों का उल्लेख किया है।
afa का पिता देवदत्त भी कवि था और रचित वरांग चरित्र का निर्देश किया गया है। देवदत्त की प्रशंसा भी की है । जैसे
संते सयंभुए एवे एक्को कइत्ति विनि पुणु भणिया । जायम्मि पुप्फयंते तिणि तहा देवयतंनि ॥५.१ अर्थात् स्वयंभू के उत्पन्न होने पर संसार में एक ही कवि कहा जाता था ।
१. वरिसाण सय चउक्के सत्तरि जुत्ते जिणेंद वीरस्स । णिव्वाणा उववण्णो विक्कम कालस्स विक्कम णिव कालाउ छाहत्तर दस सएसु माहम्मि सुद्ध पकले बसम्मी दिवसम्मि बहुराय कज्ज धम्मत्थ कामगोठी विहत वीरस्स चरिय करणे इक्को संवत्सरो जस्स कय देवयत्तो जणणो सच्चरिथ लद्ध माहप्पो । सुह सील सुद्ध वंसो जणणी सिरी संतुआ आभणिया ॥ ६ जस्स य पसण्ण वयणा लहूणो सुमइ स सहोयरा तिण्णि । सोहल्ल Maint जसइ णामेत्ति विखाया ॥७ जाया जस्स मणिट्ठा जिणवइ पोमावइ पुणो वीया । लीलावइ ति तईया पछिम भज्जा जयादेवी ॥८ ज० सा० च० अन्तिम प्रशस्ति
२.
ग्रंथ में उसके द्वारा पद्धड़िया बंध में कुछ सन्धियों के आरम्भ में कवि ने
३.
देखिये प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ में पृ० इह अत्थि परमजिण पय सरणु, सिरि लग्गु वग्गु तह विमल जसु, वहु भावहं जें वरंग चरित, कवि गुण रस रंजिय विउससह, चच्चरि बंधि विरइउ सरसु, नचिचज्जर जिण पय सेवर्याह,
उप्पती ॥ १ वरिसाणं ।
संतमा । २
समक्स्स । लग्गो ॥५
४३९ पर पं० परमानन्द जैन का लेख । गुडखेड विणिग्गउ सुह चरणु ।
देवयत्तु
निवुट्टकसु ।
कइ पद्घडिया
बंध
उद्धरितं ।
सुद्दय बीर
वित्थारिय
गाइज्जइ संतिउ किउ रासउ
कह ।
जसु ।
तारु अंबादेवर्याह ।
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