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अपभ्रंश-साहित्य
सूर्य के निस्तेज होने का श्लेष द्वारा कारण प्रतिपादन सन्ध्या के विलुप्त होने की कल्पना और चन्द्र का वर्णन परंपराभुक्त नहीं कवि की नवोन्मेषिणी प्रतिभा के द्योतक हैं । सन्ध्या का लता रूप में जग मंडप पर छा जाना, तारों के रूप में पुष्प और चन्द्र रूप में फल का प्रतिपादन, सुन्दर कल्पना है ।
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इसी प्रकार कवि ने (३.१ में) शिप्रा नदी का सुन्दर वर्णन किया है ।" शब्द योजना और छन्द प्रयोग से मन्द मन्द गति से कल-कल ध्वनि करती हुई नदी की कल्पना हो जाती है ।
प्रकृति का वर्णन शुद्ध आलम्बन रूप में कवि ने किया है । १.१२ में किया हुआ उद्यान वर्णन और ३.१ में किया नदी वर्णन संश्लिष्ट वर्णन के सुन्दर उदाहरण हैं । मानव की पृष्ठभूमि के रूप में प्रकृति का अंकन नहीं मिलता ।
भाषा - भावोद्रेक की दृष्टि से भावतीव्रता ग्रंथ में मन्द है किन्तु भाषा वेगवती है । कवि जो कुछ कहना चाहता है तदनुकूल शब्द योजना कर सका है ।
नकुल साँप को डसता है पीछे से तरक्षु आकर उसका सफाया करता है। इसी का वर्णन कवि ने निम्न शब्दों में किया है-
सो हउं भक्वमि सो मई डसइ, तोडइ तडत्ति तणु बंधणई, फाडइ चडत्ति चम्मई चलई, हउं एम तरींच्छ खयहो णिउ,
महु पलु तरच्छु पच्छइ गसइ । मोss कडत्ति हड्डई घणई । बुट्ट घडत्ति सोणिय जलइं । मई मायाविसहरु कवलु किउ ।
१. दुबइ - तडतरु पडिय कुसुम पुंजज्जल पवणवसा चलंतिया । दोसs पंचवण्ण णं साडी महिमहिलहि घुलंतिया ॥ जल कीलतं तरुणिघण थण जय वियलिय घुसिण पिंजरा । वायाहय विसाल कल्लोल गलच्छिय मत्तकुंजरा । कच्छव मच्छ पुच्छ संघट्ट विहट्टिय सिप्पि संपुडा | कूल पडंत धवल मुत्ताहल जल लव सित्त फणिफडा ।। हंत रिंद णारि तणु भूषण किरणारुणिय पाणिया । सारस चास भास कारंड विहंडिर हंसमाणिया ॥ परिघोलिर तरंग रंगंतर मंत तरंत पविमल कमल परिमला सायण हंजिय भमिर मंडुवठ एसवसंठिय तावस वास सीयल जल समीरणासासिय गियर कुरंग वणयरा ॥ जुज्झिर मयर करि करुप्कालण तसिय तडत्थ वाणरा । पडिय फुलिंग वारि पुण्णाणग चायय णियर दिहियरा ॥ ar चिक्खिल्ल खोल्ल खणि खोलिर लोलिर कोल संकुला । असइसत्य णिच्च संसेविय बहल तमाल महयला ॥ (३.१.२-१८ )
मणहरा ।
णरबरा ।
महुयरा ॥