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अपभ्रंश-साहित्य ___इसी शैली के उदाहरण पृथ्वीराज रासो में भी मिलते हैं। उदाहरण के लिए निम्नलिखित रति युद्ध का दृश्य देखा जा सकता है ।
लाज गठ्ठ लोपंत,, बहिम रद सन ढक रज्जं । अधर मधुर दंपतिय, लुटि अब ईव परज्जं । प्ररस प्ररस भरअंक, खेत परजंक पटक्किय । भषन टूटि कवच्च, रहे प्रध बीच लटक्किय । नीसान थान नूपुर बजिय, हाक हास फरषत चिहुर । रति वाह समर सुनि इंछिनिय, कोर कहत बत्तिय गहर।।
पद्य संख्या १९७९ रति और युद्ध में कुछ क्रियाओं का साम्य प्रदर्शित किया गया है । लाज का लोप हो गया है, एक ओर अंधर रस की लूट है दूसरी ओर भी शत्रु द्रव्य की लूट है। एक ओर अंक में भर पर्यंक पर पटकना है दूसरी ओर रणक्षेत्र में पटकना है । एक और भूषणं टूटते हैं दूसरी ओर कवच । एक ओर नूपुरों का शब्द है दूसरी ओर बाजों का। इस प्रकार रति और युद्ध में साम्य प्रदर्शित किया गया है।
५. आचार्य हजारी प्रसाद जी द्विवेदी ने अपने "हिन्दी साहित्य का आदि काल" नामक ग्रंय में पृथ्वी राज रासो और संदेश रासक की समानता की ओर निर्देश किया है । संदेश रासक का जिस ढंग से आरम्भ हुआ है उसी ढंग से रासो का भी आरम्भ हुआ है। आरम्भ की कई आर्याओं में तो अत्यधिक समानता है । इसी प्रकार संदेश रासक में कवि ने जिस बाह्य प्रकृति के व्यापारों का वर्णन किया है वह रासो के समान ही कवि प्रया के अनुसार है । वयं विषय के लिए वस्तु-सूचि प्रस्तुत करने का ढंग दोनों में मिलता है । इसके अतिरिक्त विविध छंदों का प्रयोग भी दोनों ग्रंथों में दिखाई देता है।
___ इस प्रकार भाषा तथा रचना-शैली के भिन्न-भिन्न साम्यों से यह प्रतीत होता है कि रासो का मूल ग्रंथ अपभ्रंश भाषा में ही रचा गया, जो कालान्तर में बढ़ते-बढ़ते अनेक भाषाओं के पुट के साथ आधुनिक रूप में परिवर्तित हो गया । इस आधुनिक पृथ्वीराज रासो का समय यद्यपि १५वीं, १६वीं शताब्दी के लगभग का है किन्तु प्राचीन मूलरूप १२वीं १३वीं शताब्दी का माना जा सकता है।
पद्म पुराण-बलभद्र पुराण यह ग्रंथ अप्रकाशित है। इसकी दो हस्त-लिखित प्रतियाँ आमेर शास्त्र भंडार में विद्यमान हैं।
१. श्री हजारी प्रसाद द्विवेदी-हिन्दी साहित्य का आदिकाल, बिहार राष्ट्र भाष परिषद, पटना, सन् १९५२ ई०,१०६० ।
२. वही, पृ० ८४॥