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घसा
अपभ्रंश-साहित्य
णा सलिलावत्तु लक्खि ज्जइ मणहरु कमलसर । णाई सुमित्तं मित्तु अवगाहिउ णयणानंदयरु । जत्य सछ विछलाई, मछ कविलाई | राध हंस सोहियाई, मत्त हत्थि डोहियाई । भीतरंग भंगु राई, तार हार पंडुराई । पउमिणी करंवियाई, मारुयप्पवेवियाई
सेवियाई, गक्क गाह माणियाइं । पाणियाई, सेयणील लोहियाइं । छप्पयाउलाई ।
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चक्कवाय
एरिसाई
सूर रासि वोहियाई, मत्त जत्थ एरिसुप्पलाई .
२. २
युद्ध का सजीव वर्णन निम्नलिखित उद्धरण में देखा जा सकता है । छन्द की गति द्वारा कवि ने स्थान-स्थान पर युद्ध की गति का भी साक्षात् चित्र उपस्थित कर दिया है ।
चाउरंग वाहणाई । तोसियामरच्छराई 1 कुंभकोडिवोक्किराई
।
ाइयाई ।
उत्थरं तिसाहणाई सुबु बद्ध मच्छराई, एकमेक्क कोक्किराई, वाण जाल छाइयाई, धूलि धाउ धूसराई, वंते दंत पेल्लियाई, घोर घाइ भिभलाई, तिक्ख खग्ग खंडियाई, घोर गिद्ध संकुलाई,
चूरणाय आउ होइ जज्जराई
लियाई ।
सोणियं वरे णित्त अंत
चोंभलाई ।
"
भल्लु यार वाउलाई । सीह विक्कमे विवक्ले । हीयमाण, एस धक्ख ।
भज्जंत समाउई । जुज्झत सुहडाई । णिग्गंत अंताई । भित गत्ताई । लोटंत चिधाई । तुट्टंत छत्ताई ।
२.१
कवि के युद्ध वर्णन का एक उदाहरण और देखिये
तो भिडिय परोष्पद रण-कुसल विष्ण
बिणिण वि गिरि-तुंग-सिंग- सिहर बिण्णि विष्णि वि दट्ठोट्ठ रुट्ठ-वयण विष्ण बिणि विह-यल-हि-वच्छ-यल विणि वि
७. ६
रथ टूट रहे हैं, योद्धा युद्ध करते जा रहे हैं, प्रहार से आंतें बाहर निकल पड़ती हैं, गात्र रुधिर से भीग रहे हैं, ध्वजायें भग्न हो पृथ्वी पर लोट रही हैं और छत्र टूटते जा रहे हैं । कितना स्पष्ट वर्णन है ।
वि
वि
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३. ७
णव- णायसहास- बल । जलहर-रव-गहिर - गिर । गुंजा - हल - सम-णयण । परिहोवम-भय-जुयल ।