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अपभ्रंश-साहित्य
अर्थात् दुःखाकुल सब लोग रोने लगे। दबा-दबा कर मानो सर्वत्र शोक भर दिया हो। भृत्यगण हाथ उठा-उठा कर रोने लगे मानो कमलवन हिम-पवन से विक्षिप्त हो उठा हो । राम माता एक सामान्य नारी के समान रोने लगी । सुन्दरी ऊर्मिला हतप्रभ हो रोने लगी। सुमित्रा व्याकुल हो उठी। रोती हुई सुमित्रा ने सब जनों को रुला 'दिया--कारुण्य-पूर्ण काव्य-कथा से किसके आंसू नहीं आ जाते ? __रावण के लिए मन्दोदरी का विलाप भी इसी प्रकार करुण-रस-परिपूरित है । मन्दोदरी विलाप करती हुई विगत शृगारिक घटनाओं का स्मरण कर और भी अधिक व्याकुल हो जाती है (प० च० ७६. १०) । यह भावना कुमारसंभव में काम के लिए 'विलाप करती हुई रति का स्मरण करा देती है ।
इसी प्रकार अंजना सुन्दरी के लिये विलाप करते हुए पवनंजय के कारुण्य-व्यंजन में भी कवि कालिदास से प्रभावित हुआ प्रतीत होता है। निम्नलिखित वर्णन कालिदास के विक्रमोर्वशीय नाटक में उर्वशी के लिये विलाप करते हुए पुरूरवस् का स्मरण करा देता है
पवणंजय वि पडिवक्स खउ, काणणु पइसरह विसापरउ । पुछइ अहो सरोवर विट्ठ षण, रस्तुप्पल दल कोमल चलण। अहो रायहंस हंसाहिवइ, कहि काहमि विट्ठ जइ हंसगह। अहो दोहर णहर मयाहिवइ, कहि कहिमि णियंविणि विट्ठ जइ। महो कुंभि कुंभ सारिछयण, कित्तहे वि दिड सइ मुद्ध मण। महो अहो असोय पल्लव व पाणि, कहिं गय परय परहुयवाणि । महो रुंद चंद चंदाणणिय, मिग कहिमि विट्ठ मिग लोयणिय । अहो सिहि कलाव सण्णिह चिहर, जणिहालिय कहिंमि विरहविहर।
प० च० १९. १३. लक्ष्मण के लिए विलाप करते हुए राम का दृश्य भी करुणापूर्ण है। राम सब प्रकार के कष्टों को सहने के लिए तत्पर हैं किन्तु भ्रातृ वियोग उनके लिए असह्य हैघत्ता-परि वंति वंते मुसलग्गेहि, विणिमिन्दाविउ अप्पणउ । वरि णरय दुक्खु मायामिउ, णउ बिऊउ भाइहिं तणउ॥
प० च० ६७. ४. लक्ष्मण के आहत हो जाने पर भरत भी अत्यधिक व्याकुल हैं। उनकी दृष्टि में भत विरहिता नारी के समान आज पृथ्वी अनाथ हो गईयत्ता-हा पह सोमित्ति ! मरंतएण, मरइ शिरुत्तउ दासरहि ।
भत्तार-विहूणिय णारि जिह, अज्जु प्रणाहीहूय महि ॥ जैन कवियों का धार्मिक उपदेश तो प्रायः सभी ग्रंथों में पाया जाता है । संसार को तुच्छ, नश्वर और दुःख-बहुल बतला कर, शरीर की क्षण-भंगुरता का प्रतिपादन कर, संसार के मिथ्यात्व का उपदेश देते हुए इन्होंने उसके प्रति विरक्ति पैदा करने का प्रयत्न