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अपभ्रंश-साहित्य
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इसमें स्वयंभू, योगीन्दु, धनपाल, हेमचन्द्र, अब्दुलरहमान आदि लेखकों की कृतियों का अन्तर्भाव होगा। महाराष्ट्र प्रदेश का अपभ्रंश साहित्य
इसमें पुष्पदन्त और मुनि कनकामर की कृतियों का अन्तर्भाव होगा। ३. पूर्वी प्रांतों का अपभ्रश साहित्य
इसमें सिद्धों और विद्यापति की रचनाओं की परिगणना की जा सकती है। ४. उत्तरी प्रदेशों का अपभ्रंश साहित्य
इसमें नाथ संप्रदाय वालों के अपभ्रंश पदों का समावेश किया जा सकता है। धर्म या सम्प्रदाय की दृष्टि से भी अपभ्रश साहित्य का वर्गीकरण किया जा सकता है। अधिकांश अपभ्रंश साहित्य जैनियों द्वारा ही रचा गया इसलिए इस सारे साहित्य का विभाजन दो भागों में किया जा सकता है-जैन अपभ्रंश-साहित्य और जैनेतर अपभ्रंश साहित्य । जनेतर अपभ्रंश साहित्य में जैन धर्म से भिन्न धर्मवालों द्वारा रचित अपभ्रंश साहित्य आ जाता है। ___इस प्रकार जनेतर अपभ्रंश साहित्य का भी निम्नलिखित तीन कोटियों में विभाजन किया जा सकता है
१. ब्राह्मण्यों द्वारा रचित अपभ्रंश साहित्य, २. बौद्धों द्वारा रचित अपभ्रंश साहित्य, ३. मुसलमानों द्वारा रचित अपभंश साहित्य
तीसरा वर्गीकरण काव्य रूप की दृष्टि से किया जा सकता है। समस्त अपभ्रंश साहित्य को हम प्रबन्धात्मक काव्य और मुक्तक काव्य इन दो भागों में बांट सकते हैं। प्रबन्धात्मक अपभ्रंश साहित्य भी महाकाथ्य और खंड काव्य इन दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। __इन तीनों प्रकार के वर्गीकरण में प्रदेश की दृष्टि से किया गया वर्गीकरण वैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता। यदि एक प्रान्त का वासी लेखक दूसरे प्रान्त में जाकर रचना करता है तो उसकी रचना में पहले प्रान्त की विशेषताएं ही परिलक्षित होंगी, यद्यपि वगीकरण की दृष्टि से उसकी रचना का अन्तर्भाव दूसरे प्रान्त में ही किया जायगा । धर्म की दृष्टि से किये गये वगीकरण में भिन्न-भिन्न धर्म या संप्रदाय वालों की विचारधारा का सरलता से अध्ययन किया जा सकता है। किन्तु साहित्य की तुलनात्मक समीक्षा का अध्ययन करने वाले के लिए यह तीसरे प्रकार का वर्गीकरण ही अधिक संगत और उपयोगी सिद्ध होगा इसलिए इसी तीसरे प्रकार के वर्गीकरण के आधार पर आगामी अध्यायों में अपभ्रश साहित्य के अध्ययन का प्रयत्न किया गया है।