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पाँचवाँ अध्याय
अपभ्रंश - साहित्य का संक्षिप्त परिचय
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अपभ्रंश भाषा का समय भाषा विज्ञान के आचार्यों ने ५०० ई० से १००० ई० तक बताया है किन्तु इसका साहित्य हमें लगभग ८ वीं सदी से मिलना प्रारम्भ होता है । प्राप्त अपभ्रंश साहित्य में स्वयंभू सबसे पूर्व हमारे सामने आते हैं अपभ्रंश - साहित्य का समृद्ध युग ९ वीं से १३ वीं शताब्दी तक है । इसी काल में पुष्पदन्त, धवल, धनपाल, नयनन्दी, कनकामर, धाहिल इत्यादि अनेक प्रतिभाशाली कवि हुए ह । इनमें से यदि पुष्पदन्त को अपभ्रंश - साहित्य का सर्वश्रेष्ठ कवि कहा जाय तो कोई अत्युक्ति न होगी । पुष्पदन्त की प्रतिभा का मूल्य इसी बात से आंका जा सकता है कि इनको अपने महापुराण में एक ही विषय - स्वप्न दर्शन — को चौबीस बार अंकित करना पड़ा । प्रत्येक तीर्थंकर की माता जन्म संबंधी स्वप्न में अनेक पदार्थ देखती है, इसका वर्णन प्रत्येक तीर्थंकर के चरित वर्णन के साथ आवश्यक था। इसी से पुष्पदन्त को स्वप्न का चौबीस बार वर्णन करना पड़ा। किन्तु फिर भी एक- आघ स्थल को छोड़कर सर्वत्र नवीन छन्दों और नवीन पदावलियों की योजना मिलती है और कहीं पिष्टपेषण नहीं प्रतीत होता । पुष्पदन्त के बाद के कवियों ने इनका आदरपूर्वक स्मरण किया है ।
जैनों द्वारा लिखे गये महापुराण, पुराण, चरिउ आदि ग्रंथों में, बौद्ध सिद्धों द्वारा द्वारा लिखे गये स्वतन्त्र पदों, गीतों और दोहों में, कुमार पालप्रतिबोध, विक्रमोवंशीय, प्रबन्ध चिन्तामणि आदि संस्कृत एवं प्राकृत ग्रंथों में जहाँ तहां कुछ स्फुट पद्यों में और वैयाकरणों द्वारा अपने व्याकरण ग्रंथों में उदाहरणों के रूप में दिये गये अनेक फुटकर पद्यों के रूप में हमें अपभ्रंश साहित्य उपलब्ध होता है । इसके अतिरिक्त विद्यापति की 'कीर्तिलता' और अब्दुलरहमान के 'संदेशरासक' आदि
१. महापुराण के निम्नलिखित स्थलों की तुलना कीजिये -
३८.१२,
४१.४, ४२.४, ४३.५,
४६.३,
४७.७,
४८.६,
४९.६,
५५.५, ५८.५,
६३.२,
६५.३,
६७.४,
६८.४,
८७.१२,
९४.१४,
३.५,
४४.४,
५३.५,
६४.४
८०.६,
५९.३,
६७.५,
९६८,