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अपभ्रंश साहित्य का संक्षिप्त परिचय जंगल में थे और राम सीता के पास पर्णकुटी में। लक्ष्मण ने राम को बुलाने के लिये सिंहनाद का संकेत बताया था। रावण ने लक्ष्मण के समान सिंहनाद किया, जिसे लक्ष्मण का सिंहनाद समझकर राम व्याकुल हो सीता को जटायु की रक्षा में छोड़ वहाँ से चल पड़ा । पीछे से रावण ने सीताहरण कर लिया।
रामायण के युद्धकांड की घटनाएं भी पउमचरिय में कुछ परिवर्तित हैं । समुद्र एक राजा का नाम था, जिसके साथ नील ने घोर युद्ध किया और उसे हराया। जब लक्ष्मण को शक्ति लगी तो द्रोणमेघ की कन्या विशल्या की चिकित्सा से वह अच्छा हुआ और लक्ष्मण ने विशल्या के साथ विवाह कर लिया। अन्त में लक्ष्मण ने रावण का संहार किया। ___ अयोध्या में लौटकर राम अपनी आठ हजार और लक्ष्मण अपनी तेरह हजार पत्नियों के साथ राज्य करने लगे। लोकापवाद के कारण सीता-निर्वासन और सीता की अग्नि-परीक्षा का प्रसंग वाल्मीकि रामायण के अनुसार ही है। अग्नि-परीक्षा में सफल होकर सीता ने एक आर्यिका के पास जैनधर्म में दीक्षा ले ली और बाद में स्वर्ग को सिधारी।
एक दिन दो स्वर्गवासी देवों ने बलदेव और वासुदेव के प्रेम की परीक्षा के लिये लक्ष्मण को विश्वास दिलाया कि राम का देहान्त हो गया। इस से शोकाकुल होकर लक्ष्मण मर गये और अन्त में नरक को सिधारे । लक्ष्मण की अन्त्येष्टि के पश्चात् राम ने जैनधर्म में दीक्षा ले ली और साधना करके मोक्ष को प्राप्त किया। ___गुणभद्र की परम्परा के अनुसार राम कथा का रूप निम्नलिखित है। वाराणसी के राजा दशरथ की सुबाला नामक रानी से राम, कैकयी से लक्ष्मण और बाद में साकेतपुरी में किसी अन्य रानी से भरत और शत्रुघ्न नामक पुत्र उत्पन्न हुए। गुणभद्र के अनुसार सीता, रावण की रानी मंदोदरी की पुत्री थी। सीता को अमंगलकारिणी समझकर इन्होंने उसे एक मंजूषा में डलवाकर मारीच द्वारा मिथिला देश में गड़वा दिया । हल की नोक में उलझी वह मंजूषा राजा जनक के पास ले जाई गई। जनक ने उसमें एक कन्या को देखा और उसका नाम सीता रख कर पुत्री की तरह पालन-पोषण किया। चिरकाल के पश्चात् राजा जनक ने अपने यज्ञ की रक्षा के लिये राम और लक्ष्मण को बुलाया। यज्ञ समाप्ति पर राम और सीता का विवाह हुआ। राम-लक्ष्मणदोनों दशरथ की आज्ञा से वाराणसी में रहने लगे। कैकयी के हठ करने, राम को वनवास देने आदि का इस परम्परा में कोई निर्देश नहीं । पंचवटी, दण्डक वन, जटायु, शूर्पणखा, खरदूषण आदि के प्रसंगों का भी अभाव है।
राजा जनक ने रावण को अपने यज्ञ में निमन्त्रित नहीं किया था। इस पराभव से जल कर और नारद के मुख से सीता के सौन्दर्य की प्रशंसा सुनकर रावण ने, स्वर्ण भृग का रूप धारण किये हुए मारीच द्वारा, सीता का अपहरण कर लिया। सीताहरण के समय राम और सीता वाराणसी के निकट चित्रकूट वाटिका में विहार कर रहे थे।
गुणभद्र की कथा में हनुमान ने राम की सहायता की। लंका में जाकर सीता .