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अपभ्रंश साहित्य का संक्षिप्त परिचय
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काव्य इसके प्रमाण हैं। इन काव्यों में प्रकृति भी स्वतन्त्र रूप से या गौण रूप से वर्णन का विषय रही है। प्रकृति का वर्णन महाकाव्य का एक अंग बन गया । महाकाव्यों में वन, नदी, पर्वत, संध्या, सूर्योदय, चन्द्रोदय आदि के वर्णन आवश्यक हो गये। इन विषयों के अतिरिक्त प्रेम भी कवियों का वर्ण्य विषय रहा । महाकाव्यों में यह तत्व इतना अधिक स्पष्ट नहीं दिखाई देता जितना कि नाटकों में। 'स्वप्नवासवदत्ता', 'विक्रमोर्वशीय', 'शकुन्तला', 'मालती माधव', 'रत्नावली' आदि नाटकों में इसी प्रेम तत्व की प्रधानता है । महाकाव्यों के अतिरिक्त अनेक इस प्रकार के मुक्तक काव्य भी लिखे गये जिनमें नीति, वैराग्य या शृंगारादि का वर्णन है। इस प्रकार संस्कृत और प्राकृत के काव्यों का मुख्य विषय-महापुरुष वर्णन, देवी-देवता वर्णन, प्रकृति-वर्णन और प्रेम ही रहा । गौण रूप से नीति, वैराग्य, शृंगारादि का भी वर्णन हुआ। इनका सम्बन्ध भी मानव के सा ही है। इन विषयों के कारण काव्य में वीर, शृगार या शान्त रस ही प्रधान रूप से प्रस्फुटित हुआ।
अपभ्रंश साहित्य में भी संस्कृत और प्राकृत की परम्परा के अनुकूल ही जैनियों ने या तो किसी महापुरुष के अथवा किसी तीर्थकर के चरित्र का वर्णन या किसी महापुरुष के चरित्र द्वारा व्रतों के माहात्म्य का प्रतिपादन किया है। सिद्धों की कविता का विषय अध्यात्मपरक होने के कारण उपरिलिखित विषयों से भिन्न है। अपनी महत्ता प्रतिपादन के लिए प्राचीन रूढ़ियों का खंडन, गुरु की महिमा का मान और रहस्यवाद आदि इनकी कविता के मुख्य विषय हैं।
जैन प्रबन्ध काव्यों के कथानक की रचना का आधार जैनियों के कर्म विपाक का सिद्धान्त प्रतीत होता है। इसी को सिद्ध करने के लिए जैन कवि इतिहास के इतिवृत्त की उपेक्षा कर उसे स्वेच्छा से तोड़ मरोड़ देता है। इसी कर्म सिद्धान्त की पुष्टि के लिए जैन कवि स्थल-स्थल पर पुनर्जन्मवाद का सहारा लेता है । अपभ्रंश साहित्य की रचना की पृष्ठभूमि प्रायः धर्मप्रचार है। जैनधर्मलेखक प्रथम प्रचारक है फिर कवि। ____ अपभ्रंश साहित्य में हमें महापुराण, पुराण और चरित-काव्य के अतिरिक्त रूपककाव्य, कथात्मक ग्रंथ, सन्धि-काव्य रास ग्रंथ, स्तोत्र आदि भी उपलब्ध होते हैं। इनमें से महापुराणों का विषय-चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ वासुदेव, नौ बलदेव और नौ प्रतिवासुदेवों का वर्णन है। इस प्रकार ६३ महापुरुषों के वर्णन के कारण ऐसे ग्रंथों को त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित या तिसट्ठि महापुरिस गुणालंकार भी कहा गया है। पुराणों में पद्मपुराण और हरिवंश पुराण के रूप में ही लिखे पुराण मिलते हैं। पद्म पृराग में प्राचीन रामायण कथा का और हरिवंश पुराण में प्राचीन महाभारत की कथा का जैन धर्मानुकूल वृत्तान्त मिलता है । ये दोनों कथायें जैनियों ने कुछ परिवर्तन के साथ अपने पुराणों में ली । ___ जैनियों ने रामकथा के पात्रों को अपने धर्म में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है। राम, लक्ष्मण और रावण केवल जैन धर्मावलम्बी ही नहीं माने गये अपितु इनकी गणना विषष्टि महापुरुषों में की गई है। प्रत्येक कल्प के त्रिषष्टि महापुरुषों में से नौ बलदेव