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मार्गशिर, वीरनि० सं०२४५६)
चित्र-दर्शन poxoroxor of focus
चित्र-दर्शन
awuroros Forord १ इस पत्रमें सबसे पहले मुख पृष्ठ पर जिस दुरंगे यह दर्द अपनी सीमाको पार कर गया-असह्य हो चित्रका दर्शन होता है वह 'अनेकान्त' सत्सर्यका चित्र उठा-और वर्षों तक लोकस्थितिका अनुभव करनेके है । अनेकान्त सूर्य कितना देदीप्यमान है!! वह विश्वके बाद उन्हें उस दर्दको दूर करने अथवा लोक स्थितिको संपूर्ण तत्त्वोंका-पदार्थोंका-ऊपरसे ही प्रकाशक नहीं सुधारनेका सम्यक् उपाय सूझ पड़ा तब आपने और किन्तु प्रत्येक वस्तुके भीतरी तत्त्वका-उसके रहस्य अधिक समय तक गृहवासमें रहना उचित नहीं समझा का-भी प्रकाशक है; उसकी किरणें एकान्त-अनेकांत, -उन्हें यह न्याय्य ही मालूम नहीं पड़ा कि प्रजाजनके भाव-अभाव, लोक-अलोक, जीव-अजीव, बन्ध-मोक्ष, दुखी रहते वे सुखका उपभोग करें-उन्हें अब भोगोंमें पुण्य-पाप, शुभ-अशुभ, सुख-दुख, कर्म-अकर्म, हिंसा- कुछ भी आनन्द नहीं आता था, वे एक प्रकारके रोग अहिंसा, सत्य-असत्य, एक-अनेक, नित्य-अनित्य, प्रतीत होते थे और संपूर्ण राज्य-वैभव निःसार जान अपेक्षा-अनपेक्षा, युक्ति-भागम, अंतरंग-बहिरंग, दैव- पड़ता था । अतः उन्होंने लोकहितकी शुभ भावनाओं पुरुषार्थ,शुद्धि-अशुद्धि,स्वभाव-विभाव,प्रमाण-अप्रमाण, संप्रेरित होकर और लोकोद्धारका दृढ़ संकल्प करके साध्य-साधन,साधर्म्य-वैधर्म्य,सुनय-दुर्नय, द्रव्य-पर्याय, एकाएक राज्यकी संपूर्ण लक्ष्मीको ठुकरा दिया और गुण-गणी, स्वतत्त्व-परतत्त्व, सामान्य-विशेप, आत्मा- इन्द्रियसुखोंसे मुख मोड़कर मार्गशिर कृष्ण दशमीको परमात्मा, विद्या-अविद्या, और सम्यक्त्व-मिथ्यात्व जैसे तपस्याकेलिए जंगलका रास्ता लिया । इस समाचारसे गहन विषयों पर अपना कैसा प्रकाश डाल रही हैं। नगर भरमें खलबली मच गई और लोगोंके हृदयमें
और साथ ही, साँख्य, वैशेषिक, योग, जैन, बौद्ध, सविशेष रूपस भक्तिका भाव उमड आया। झंडकेझंड मीमांसक, न्याय, वेदान्त, चार्वाक जैसे दर्शनोंकी नरनारी-अमीर और गरीब सब-जंगलकी ओर चल तथा इतिहास, माहित्य, समाज, नीति, कला, व्यापार दिये और उन्होंने 'ज्ञातखंड' बनमें जाकर देखा कि,
और विज्ञान जैसे विषयोंकी स्थितिको कितना स्पष्ट भगवानने अपने शरीर परसे वस्त्राभूषणोंको भी उतार कर रही हैं, यह सब ही चित्रकारनं इस चित्रमें कर फेंक दिया है और वे एक शिला पर प्रसन्न चित्त चित्रित किया है। अथवा प्रकरान्तरसे यह दर्शाया है बैठे अपन केशोंका लौंच कर रहे हैं-मा
-मानों केश भी कि यह पत्र इन सब विषयों पर गहरा प्रकाश डाल कर अब उन्हें क्लेश प्रतीत होरहे हैं और वे उन्हें बिना किसी मिथ्यान्धकारको दूर करनेके लिये उद्यत हुआ है। झिझकके अपने हाथोंसे उपाड़ कर अपने शरीरसे भी .२ दूसरा तिरंगा चित्र जो इस पत्रके शुरूमें लगा निस्पृहताका परिचय दे रहे हैं । सामने कोई भव्य है वह भगवान महावीरकी जिनदीक्षाका चित्र है। पुरुष बैठे उन केशोंका चयन कर रहे हैं और उन्हें रल महावीर ३०वर्ष तक गृहवासमें रहें, उन्हें आज्ञा-ऐश्वर्य जड़ित पिटारीमें रखते जाते हैं, जिनकी बाबत यह सुना राज्यविभूति और सुखकी सब सामग्री प्राप्त थी। परंतु गया कि वे स्वर्गके कोई इन्द्र हैं और इन केशोंको क्षीर साथ ही उनके दिलमें एक दर्द भी था, जिसने उन्हें सागरमें क्षेपनके लिये ले जायेंगे । इसी सब भावका कभी इस मनोमुग्धकारी सम्पत्तिमें लीन नहीं होने चित्रकारने इस चित्रमें चित्रित किया है। वह कहाँ तक दिया, और वह दर्द यही था कि संसारके प्राणी उन्हें इसमें सफल हुआ है इसका निर्णय पाठक देखने पर दुःखित, पीडित, पतित और मार्गच्युत नजर आते थे, स्वयँ कर सकेंगे। महावीरका विशेष परिचय पानेके और यह सब उनसे देखा नहीं जाता था । जब उनका लिये पत्रका पहला लेख देखना चाहिये ।