Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेययोधिनी टीका प्र. पद १ सू.८ रूपी अजीवप्रज्ञापना । ___ १२३ कर्कशस्पर्शपरिणता अपि१, मृदुकस्पर्शपरिणता अपि२; गुरुकस्पर्शपरिणता अपि३, लघुकस्पर्शपरिणता अपि४, शीतस्पर्शपरिणता अपि९, उष्णस्पर्शपरिणता अपि६। संस्थानतः परिमण्डलसंस्थानपरिणता अपि१, वृत्तसंस्थानपरिणता अपि२, व्यस्रसंस्थानपरिणता अपि३, चतुरस्रसंस्थानपरिणता अपि४, आयतसंस्थानपरिणता अपि ।५।२३॥१८४॥सू०८॥ टोका-अथ स्पर्शस्य वर्णादिभिः सह (१८४) चतुरशीत्यधिकशतविकल्पान् प्रतिपादयितुमाह-'जे फासओ कक्खडफासपरिणया ते वण्णओ कालवण्णपरिया पि, (महुररसपरिणया वि) मधुर रसवाले भी हैं।
(फासओ) स्पर्श से (कक्खडफासपरिणया चि) कर्कश स्पर्शवाले भी हैं (मउयफासपरिणया वि) मृदु स्पर्शयाले भी हैं (गरुयफासपरिणया वि) गुरु स्पर्शवाले भी हैं (लहुयफासपरिणया वि) लघु स्पर्शवाले भी हैं (सीयफासपरिणया वि) शीत स्पर्शवाले भी हैं (उसिणफासपरिणया वि) उष्ण स्पर्शवाले भी हैं।
(संगणओ) संस्थान से (परिमंडलसंठाणपरिणया वि) परिमंडल संस्थानवाले भी हैं (पट्टसंठाणपरिणया वि) वृत्त संस्थानवाले भी हैं (तंससंठाणपरिणया वि) त्रिकोण संस्थानयाले भी हैं (चउरंससंठाणपरिणया वि) चौरस संस्थानवाले भी हैं (आययसंठाणपरिणया वि) आयत संस्थानवाले भी हैं सू०॥८॥
टीकार्थ-अब स्पर्श का वर्ण आदि के साथ योग करने पर जो एक सौ चौरासी (१८४) भेद होते हैं, उन्हें दिखलाते हैं-जो पुद्गल મધુર રસ વાળાં પણ છે.
(फासओ) २५श थी (कक्खडफासपरिणया वि) ४४२० २५A ami पछे (मउयफासपरिणया वि) भृढ २५ परिणाम ami ५४ छ (गरुयफासपरिणया वि) शु३ २५० ५.२४ाम auni ५४ छ (लहुयफासपरिणया वि) ७४ २५० पmi ५५ छ. (सीयफासपरिणया वि) शीत २५ प ५५५ छ. (उसिणफास परिणया वि) ए] २५श पाणi ५४ छे.
(संठाणओ) सस्थानथा (परिमंडलसंठाणपरिणया वि) परिभ34 सस्थानपरिभवा ५५४ छ (वट्टसंठाणपरिणया वि) वृत्तसंस्थान qmi ५४ छ (तंससंठाणपरिणया वि) निजी संस्थानका ५५ (चउरंससंठाणपरिणया वि) या२१ संस्थान पाणी पण छे (आययसंठाणपरिणया वि) मायत संस्थानाni | छ. ॥सू. ८॥
ટીકાઈહવે સ્પર્શને વર્ણ વિગેરેની સાક્ષે જોડવાથી જે એક સ ચોરાસી (१८४) andन लेहो थय छ-ते हेमा छ.
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧