Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सु.२४ वैमानिक देवानां स्थानादिक निरूपणम् ८६१ विंशतिश्च विमानानि भवन्ति इत्याख्यातम्, तानि खलु विमानानि सर्चरत्नमयानि अच्छानि श्लक्ष्णाणि, मसृणानि, घृष्टानि, मृष्टानि नीरजांसि निर्मलानि, निष्पङ्कानि, निष्कङ्कटच्छायानि सप्रमाणि, सश्रीकाणि, सोयोतानि, प्रासादीयानि दर्शनीयानि अभिरूपाणि प्रतिरूपाणि, अत्र खलु वैमानिकानाम् देवानां पर्याप्तापर्याप्तानाम् स्थानानि प्रज्ञप्तानि, विष्वपिलोकस्य असंख्येयभागे, तत्र खलु बहवो वैमानिका देवाः परिवसंति, तद्यथा-सौधर्मेशानसनत्कुमार माहेन्द्रबह्मलोकलान्तकमहाशुक्रसहस्रारानतप्राणतआरणाच्युतप्रैवेयकानुत्तरौपपातिहजार, तेईस विमान (भवंतीति मक्खाय) हैं, ऐसा कहा है (ते णं विमाणा) वे विमान (सवरयणामया) सर्वरत्नमय हैं (अच्छा) स्वच्छ (सहा) चिकने (लण्हा) कोमल (घटा महा) घटारे मठारे (नीरया) रज रहित (निम्मला) निर्मल (निप्पंका) पंकरहित (निक्कंकडच्छाया) निरावरण कान्ति वाले (सप्पभा) प्रभायुक्त (सस्सिरीया) श्रीयुक्त (सउज्जोया) उद्योत सहित (पासादीआ) प्रसादिक (दरिसणिज्जा) दर्शनीय (अभिरूवा) रमणीय रूप वाले (पडिरूवा) अत्यन्त मनोहर (एस्थ णं वेमाणियागं देवाणं पजत्तापज्जत्तागं ठाणा पण्णत्ता) यहां पर्याप्त और अपर्यास वैमानिक देवों के स्थान कहे हैं (तिलु वि लोयस्स असंखेज्जइभागे) तीनों अपेक्षाओं से लोक के असंख्यातवें भाग में (तत्थ णं) वहां (वहवे) बहुत (वेमाणिया देवा परिवसंति) वैमानिक देव निवास करते हैं (तं जहा) वे इस प्रकार हैं (सोहम्मीसाण सणंकुमारमाहिंद बंभलोगलंतगमहालुक्कसहस्सारआणयपाणय आरणच्चुसत्ताणउइं च सहस्सा तेवीसं च विमाणा) यासी 14सत्ता पर वीस विमान (भवंतीति मक्खाय) छ, सेभ यु छ (तेणं विमाणा) ते विमान (सव्व रयणामया) सब २त्नमय छे. (अच्छा) २१२७ (सहा) (२४ (लण्हा) अमर (घट्ठा मठ्ठा) घाटी भ (नीरया) २५२N31 (निम्मला) निर्म (निप्पंका) ५.४२डित (निक्कंकडच्छाया) नि२।१२ तिaan (सप्पभा) प्रमायुद्धत (सस्सिरीया) श्री युद्धत (सउज्जोया) यात सहित (पासादीआ) प्रासा४ि (रिसणिज्जा) दृश नीय (अभिरूवा) २मणीय ३५१७॥ (पडिरूवा) अत्यन्त भनी २ (एत्थणं वेमाणियाणं देवाण पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता) महि पर्यास भने अपर्याप्त वैभनि हेवाना स्थान ४i छ (तिसु वि लोयस्स असंखेज्जइ भागे) रणे अपेक्षाये।थी सोना असण्यातमा लामा (तत्थणं) त्यां (बहवे) घi (वेमाणियादेवा परिवसंति) पैमानि १ निवास ४२ छ (तं जहा) तया ॥ ५४ा छ (सोहम्मीसाणसणंकुमारमाहिदबंभलोगलंतगमहासुक्कसहस्सार आणय
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧