Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 995
________________ प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू. २९ सिद्धानां स्थानादिकम् ९८१ ज्जइ ॥ १५०॥ अलोए पहिया सिद्धा, लोयग्गे य पइट्टिया, इहं बोंदि चइत्ताणं, तत्थ गंतूण सिज्झइ ॥ १५१ ॥ दीहं वा हस्स वा जं चरिममवे हविज्जसंठाणं तत्तो तिभागहीणा सिद्धाणो गाहणा भाणिया ॥ १५२॥ जं संठाणं, तु इहं भवं चयं तस्सं चरिमसमयं मं । आसी य पदेसघणं तं संठाणं तहिं तस्स ॥ १५३ ॥ तिन्नि सया तित्तीसा धणुति भागो य होइ नायव्वो । एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिया ॥ १९४ ॥ चत्तारि य रयणीओ रयणी तिभागूणिया य बोद्धव्वा, एसा खलु सिद्धाणं मज्झिम ओगाहणा भणिया ॥ १५५ ॥ एगा य होइ रयणी अट्ठेच य अंगुलाई साहिया, एसा खलु सिद्धाणं जहन्न ओगाहणा भणिया ॥ १५६ ॥ ओगाहणाइ सिद्धा भवत्तिभागेण होंति परीहीणा । संठाणमणित्थंथं जरामरणविप्यमुक्काणं ॥ १५७॥ जत्थ य एगो । सिद्धो तत्थ अनंता भवमक्खयविमुक्का | अन्नो ऽन्न समोगाढा पुट्ठा सव्वेवि लोगंते ॥ १५८ ॥ फुसइ अनंते सिद्धे सव्त्र पसेहिं नियमसो सिद्धा । तेऽवि य असंखिज्ज - गुणा देस एसेहिं जे पुट्ठा ॥ १५९ ॥ असरीरा जीवघणा उवउत्ता दंसणे य नाणे य । सागारमणागारं लक्खणमेयं तु सिद्धाणं ॥ १६० ॥ केवलनाणुवउत्ता जाणंता सव्वभावगुणभावे । पासंता सव्वओ खलु केवलदिट्टी हि ताहिं ॥ १६९ ॥ न वि अस्थि माणुसणं तं सुक्खं न वि य सव्वदेवाणं । जं सिद्धाणं सुक्खं अव्वावाहं उवगयाणं ॥ १६२॥ सुरगण सुहं समत्तं सव्वद्धा पिंडियं अनंतगुणं । न वि पावइ मुत्तिसुहं णं ताहिं वग्गग्गूहिं ॥ १६३॥ सिद्धस्स सुहोरासी सव्वद्धा पिंडिओ जह हवेज्जा । सोऽवग्गमइओ सव्वागासे न माइज्जा ॥ १६४ ॥ जह णाम कोइमिच्छो नगरगुणो बहुविहे वियाणंतो। न चइए परिकहिउं उपमाए तहिं असंती ॥ १६५॥ इय सिद्धाणं सोक्खं अणो શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧

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