Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1000
________________ - - प्रज्ञापनासूत्रे असङ्गाश्च संसारविप्रमुक्ताः प्रदेश निर्वृत्त संस्थानाः, कुत्र प्रतिहताः सिद्धाः ? कुत्र सिद्धाः प्रतिष्ठिताः, कुत्र बोन्दि च्युत्वा खलु क्य गला सिध्यन्ति ? अलोके प्रति. हताः सिद्धाः, लोकाग्रे च प्रतिष्ठिताः, इह बोन्दि च्युत्वा खलु तत्र गत्या सिध्यन्ति ॥१५१॥ दीर्घ वा, इस्वं वा, यत् चरमभवे भवेत् संस्थानम् । ततखिभाग हीनाः सिद्धावगाहना भणिता ॥१५२॥ यत् संस्थानं तु एतद्-भवं च्यवनश्चरमसमये । आसीत् च प्रदेशघनं तत् संस्थानं तत्र तस्य ॥१५३॥ त्रीणि गर्भवास रूप वसति तथा प्रपंच से अतिक्रान्त (सासयमणागयद्धं कालं चिट्ठति) शाश्वत भविष्यत् काल तक रहते हैं (तत्थ वि) वहां भी (य) और (ते) वे (अवेया) वेद रहित (अवेयणा) वेदना रहित (निम्ममा) ममत्व रहित (असंगा य) पर-पदार्थ के संयोग से रहित (संसारविप्प. मुक्का) संसार से सर्वथा मुक्त (पएसनिव्वत्तसंठाणा) आत्म प्रदेशों से बने हुए आकार वाले (कहिं पडिहया सिद्धा) सिद्ध कहाँ रुक जाते हैं ? (कहिं सिद्धा पइडिया) सिद्ध कहां प्रतिष्ठित हैं ? (कहिं बोदि चइत्ताणं) कहां शरीर को त्याग कर (कत्थ गंतूण सिज्झइ ?) कहां जाकर सिद्ध होते हैं ॥१५०॥ __(अलोए पडिहया सिद्धा) अलोक से सिद्ध रुक जाते हैं (लोयग्गे य पइडिया) लोक के अग्रभाग में प्रतिष्ठित होते हैं (इहं बोंदि चइत्ताणं) यहां शरीर को त्याग कर (तत्थ गंतूण सिज्झइ) वहाँ जाकर सिद्ध होते हैं ॥१५१॥ ___ (दीहं वा) दीर्घ अथवा (हस्सं) इस्व (ज) जो (चरिमभवे) अंतिम भव में (हविज्ज) हो (संठाणं) आकार (तत्तो) उससे (तिभागहीणा) शाश्वत, भविष्यत् ४ सुधि २७ छ (तत्थ वि) त्यां ५५४ (य) मने (ते) तेस। (अवेया) वे २हित (अवेयणा) वेहना २डित (निम्ममा) ममत्व २डित (असंगाय) ५२५हाथ ना सयोथी २डित (संसारविप्पमुक्का) संसारथी सवथा भुत (पएस निव्वत्तसंठाणा) २माम प्रदेशाथी पनेसा २७१२७॥ (कहि पडिहया सिद्धा) सिद्ध या २।४७य छ ? (कहिं सिद्धा पइदिया) सि. यां प्रतिष्ठित छ ? (कहिं बोदि चइत्ताणं) ४यां शरीरने त्यास ४रीन (कत्थ गंतूण सिज्झइ) ४यां ने सिद्ध थाय छ ॥ १५० ॥ (अलोए पडिया सिद्धा) माथी सिद्ध २४ जय छ (लोयगे य पइद्रिया) सोनाम लामा प्रतिष्ठित थाय छ (इहं बोंदि चइत्ताणं) महि शरीर। परित्याशन (तत्थ गंतूण सिज्झइ) त्या ४४ने सिद्ध थाय छ । १५१ ।। (दीहंवा) ही (हस्स) १ (ज) २ (चरिमभवे) मतिम सपमा (हविज्ज) खाय (संठाण) २।४२ (तत्तो) तेनाथी (तिभागहीणा) alan माथी माछ। શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧

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