Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२६ ईशानादिदेव स्थानानि ८८९ बहूनि योजनसहस्राणि यावत् ऊर्ध्वम् उत्प्रेत्य अत्र खलु ईशानो नाम कल्पः प्रज्ञाः, प्राचीनप्रतीचीनायतः, उदीचीन-दक्षिणविस्तीर्णः, एवं यथा सौधर्मों यावत् प्रतिरूपः, अत्र खलु ईशानकदेवानाम् अष्टाविंशतिः विमानावासशतसहस्राणि भवन्ति इत्याख्यातं, तानि खलु विमानानि सर्वरत्नमयानि, यावत् प्रतिरूपाणि, तेषां बहुमध्यदेश भागे पञ्चावतंसकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-अङ्कावतंसकः, स्फटिकावतंसकः, रत्नावतंसको जातरूपावतंसकः मध्ये ईशानावतंसकः, ते रमणीय भूमिभाग से (उडूं) ऊपर (चंदिमसूरियगहनखत्तताराख्वाणं) चन्द्र, सूर्य. ग्रह, नक्षत्र और तारों से (बहूई जोयणसयाई) बहुत सौ योजन (बहूई जोयणसहस्साई) बहुत हजार योजन (जाय) यावत् (उर्दू उत्पइत्ता) ऊपर जाकर (एत्थ णं) यहां (ईसाणे णामं कप्पे पण्णत्ते) ईशान नामक कल्प कहा है (पाईणपडीणायए) पूर्व-पश्चिम में लम्बा (उदीणदाहिणवित्थिन्ने) उत्तर-दक्षिण में विस्तार वाला (एवं जहा सोहम्मे) इस प्रकार जैसा सौधर्मकल्प (जाव पडिरूवे) यावत् प्रतिरूप है
(तत्थ णं) वहां (ईसाणगदेवाणं) ईशानक देवों के (अट्ठावीसं विमाणवाससयसहस्सा) अट्ठाईस लाख विमान (भवंतीति मक्खाय) हैं, ऐसा कहा है (ते णं विमाणा) वे विमान (सवरयणामया) सर्वरत्नमय हैं (जाव पडिरूवा) यावन् प्रतिरूप हैं (तेसि णं बहुमज्झदेसभागे) उनके एकदम बीचों बीच (पंच) पांच (वडिसया) अवतंसक (पण्णत्ता) कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (अंकवडिसए) अंकावतंसक (फलिहडिसए) स्फटिकावतंसक (रयणवडिसए) रत्नावतंसक (जातनी (उडूढ) १५२ (चंदिम,सूरियगहनक्खत्ततारारूवाणं) यन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र भने तामाथी (बहूइं जोयणसयाई) घा योन (बहुइं जोयणसहस्साई) घn M२ योभन (जाव) यावत् (उड्ढ़ उप्पइत्ता) १५२०४०ने (एत्थणं) डि (ईसाणे णामं कप्पे पण्णत्ते) शान नाम ४६५ ४ो छ (पाईण पडिणायए) पूर्व पश्चिममा सामे (उदीणदाहिण वित्थिन्ने) उत्तर दक्षिण विस्तारवाणा (एवं जहा सोहम्मे) २मा पारे । सौधर्म ४६५ (जाव पडिरूवे) यावत् प्रति३५ छ
(तत्थणं) त्यां (ईसाणग देवाणं) Un५ वाना (अट्ठावीस विमाणावाससयसहस्सा) यावीस ५ विमान (भवंतीति मक्खायं) छ. म ४थुछ (तेण बिमाणा) ते विमान (सव्य रयणमया) सब २त्नमय छ (जाव पडिरूवा) यावत् प्रति३५ छ (तेसिणं वहुमज्झदेसभांगे) तेमना सेभ पथ्यावय (पंच) पाय (बडिंसया) अपतस४ (पण्णत्ता) ४ा छे (तं जहा) तेथे॥ २॥ ४॥२ (अंकवाडि सए) ४वत स४ (फलिहवडिसए) २५टिपत स४ (रयणवाडिसए) २नापत
प्र० ११२
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧