Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 952
________________ ९३८ प्रज्ञापनासूत्रे दशदिश उद्योतयन्तः, प्रभासयन्तः, स्वेषां स्वेषां विमानावासादीनाम् आधिपत्यं पौरपत्यम् स्वामित्वम् भर्तृ त्वम् महत्तरकत्वम्, आज्ञेश्वरसेनापत्यं कारयन्तः पालयन्तश्च महताऽहतनाटयगीतवादिततन्त्रीतलतालत्रुटितधनमृदङ्गपटुप्रवादितरवेण दिव्यान् भोगभोगान् भुञ्जाना विहरन्ति-तिष्ठति इत्याशयः, लंतए एत्थ-देविंदे देवराया परिवसइ' लान्तकोऽत्र-लान्तककल्पे, देवेन्द्रो देवराजः परिवसति, 'जहा सणंकुमारे' यथा सनत्कुमारे वैमानिककल्पे प्रतिपादितस्तथालान्तककल्पेऽपि प्रतिपादनीयः, किन्तु 'नवरं' नवरम्-तद्पेक्षया विशेषस्तु 'पण्णासाए विमाणावाससहस्साणं' पञ्चाशतो विमानावाससहस्राणाम् 'पण्णासाए सामाणियसास्सीणं' पञ्चाशतः सामानिकसाहस्रीणाम् 'चउण्हं य पण्णासाणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं' चतसृणाम् पञ्चाशताम् आत्मरक्षकदेवसाहस्रीणाम् लक्षद्वयात्मरक्षकदेवानाम्, 'अन्नेसिंच बहूणं जाव विहरइ' अन्येषाश्च गंध आदि से दशों दिशाओं को उद्योतित एवं प्रभासित करते हुए अपने विमानों का अधिपतित्व, अग्रेसरत्व, स्वामित्व, भर्तृत्व, महत्तरकत्व, आज्ञा-ईश्वर सेनापतित्व करते हुए तथा उनका पालन करते हुए, नाटक, संगीत और कुशल वादकों द्वारा वादित वीणा, तल, ताल, त्रुटित एवं मृदंग आदि दिव्य वाद्यों की निरन्तर होने वाली मधुर ध्वनि के साथ दिव्य भोगों को भोगते हुए रहते हैं। ___लान्तक कल्प में लान्तक नामक देवेन्द्र निवास करता है। उसका वर्णन सनत्कुमार इन्द्र के समान समझना चाहिए । विशेषता यह है कि लान्तक इन्द्र पचास हजार विमानों का, पचास हजार सामानिक देवों का तथा दो लाख आत्मरक्षक देवों का अधिपतित्व करता है। इनके अतिरिक्त बहुत-से अन्य लान्तक कल्पनिवासी देवों का आधिपत्य करता हुआ रहता है। છતાં પિતાના વિમાનનું અધિપતિત્વ, અગ્રેસરત્વ, ભત્વ મહત્તરકત્વ આજ્ઞાઈશ્વર સેનાપતિત્વ કરતા થકા તથા તેમનું પાલન કરતા રહિને નાટક, સંગીત અને કુશલ વાદકે દ્વારા વાદિત વીણા તલ, તાલ, ત્રુટિત તેમજ મૃદંગ આદિ દિવ્ય વાદ્યોના નિરન્તર થતા મધુર વનિની સાથે દિવ્ય ભેગને ભેગવતા રહે છે. લા-તક કલ્પમાં લાન્તક નામક દેવેન્દ્ર દેવરાજ નિવાસ કરે છે તેમનું વર્ણન સનતકુમાર દેવેન્દ્રના સમાન સમજવું જોઈએ. વિશેષતા આ છે કે લાન્તક ઈન્દ્ર પચાસ હજાર વિમાનના, પચાસ હજાર સામાનિક દેના તથા બે લાખ આત્મરક્ષક દેવના આધિપતિત્વ કરે છે. તદુપરાન્ત ઘણા બધા અન્ય લાન્તક ક૯પ વાસી દેવાનું આધિપત્ય કરતા થકા રહે છે. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧


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