Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 981
________________ प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२८ |वेयकदेवानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि ? कुत्र खलु भदन्त ! अनुत्तरौपपातिकादेवाः परिवसन्ति ? गौतम ! अस्या रत्नप्रभायाः पृथिव्याः बहु समरमणीयाद् भूमिभागात् ऊर्ध्वम्, चन्द्रसूर्यग्रहगणनक्षत्रतारारूपाणां बहूनि योशनशतानि, बहूनि योजनसहस्राणि, बहूनि योजनशतसहस्राणि, बहुका योजनकोटी:, बहुकाः योजनकोटिकोटीः ऊर्च दरम् उत्पत्य सौधर्मेशानसनत्कुमारयावदारणाच्युतकल्पान् त्रीणि अष्टादशोत्तरअवेयकविमानावासशतम् व्यतिव्रज्य तेन परं दूरं गतानि नीरजांसि निर्मलानि (कहि णे भंते ! अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ?) पर्याप्त और अपर्याप्त अनुत्तरौपपातिक देवों के स्थान कहां कहे हैं (कहि णं भंते ! अणुत्तरोववाइया देवा परिवसंति?) हे भगवन् ! अनुत्तरौपपातिक देव कहाँ निवास करते हैं (गोयमा) हे गौतम ! (इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए) इस रत्नप्रभा पृथ्वी के (बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड़) बहुत सम एवं रमणीय भूभाग से ऊपर (चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-ताराख्वाणं) चन्द्रमा, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और ताराओं से (बहूई जोयणाई) बहुत सौ योजन (बहूइं जोयणसहस्साई) बहुत हजार योजन (बहूइं जोयणसयसहस्साई) बहुत लाख योजन (बहुगाओ जोयणकोडीओ) बहुत करोड योजन (बहुगाओ जोयणकोडाकोडीओ) बहुत कोडाकोडी योजन (उड्डू) ऊपर (दूरं) दर (उप्पइत्ता) जाकर (सोहम्मीसाणसणंकुमार जाव आरणअच्चुय कप्पा) सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार यावत् आरण अच्युत कल्प (तिनि अट्ठारसुत्तरे गेविज्जग विमाणावाससए) तीन (कहि णं भंते ! अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ?) पर्याप्त मन अपर्याप्त अनुत्तरीयाति: वान स्थान या घi छ ? (कहि णं भंते ! अणुत्तरोवाइया देवा परिवसंति ?) सावन् ! अनुत्तरौ५५ति हे ४यां निवास ४२ छ ? (गोयमो !) हे गौतम! (इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए) मा २त्नमा पृथ्वीना (बहु समरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड़्ट) घशी समान तेभ. २मणीय भूमिमा ५२ (चंदिम, सूरिय,-गहगणनक्खत्ततारारूवाणं) यन्द्रमा-सूर्य, ग, नक्षत्र मन तारामाथी (बहूई जोयणसयाई) घासे यान (बहूई जोयणसहस्साई) ॥ १२ योन (बहुगाओ जोयणकोडीओ) घा ४२।योन (बहुगाओ जोयणकोडाकोडीओ) 1sी यापन (उडूढ) ५२ (दूरं) (उप्पइत्ता) २ ४४२ (सोहम्मीसाणसाणंकुमार जाव आरण अच्चुयकप्पा) सोधभ, शान. सनमार, यावत्, मा२७ अच्युत ४६५ (तिन्नि अट्ठारसुत्तरे गेविज्जगविमाणावाससए) र सो मा२ विमानाना (पीइवइत्ता) શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008 1009 1010 1011 1012 1013 1014 1015 1016 1017 1018 1019 1020 1021 1022 1023 1024 1025 1026 1027 1028 1029