Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 967
________________ प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२७ ब्रह्मलोकादिदेवानां स्थानादिकम् ९५३ 'पाईणपडीणायया' प्राचीनप्रतीचीनायतौ-पूर्वपश्चिमायामो, 'उदीण दाहिणविच्छिण्णा' उदीचीन दक्षिणविस्तीणौं, उत्तरदक्षिणविस्तारौ 'अद्धचंदसंठाणसंठिया' अद्धचन्द्रसंस्थानसंस्थिती, 'अच्चिमाली भासरासिवण्णाभा' अचिंमालाभासराशिवर्णाभौ-अर्चिषां ज्योतिषां मालावत, भासा राशिवच वर्णाभा-वर्णकान्तिययोस्तौ अचिर्माला भासराशिवर्णाभौ. 'असंखिज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ' असंख्येयाः योजनकोटिकोटयः 'आयामविक्खंभेणं' आयामविष्कम्भेण -दैर्ध्यविस्तारेण, 'असंखिज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ' असंख्येयाः योजनकोटिकोटयः 'परिक्खेवेणं' परिक्षेपेण परिधिना, 'सव्वरयणामया' सर्वरत्नमयौ -सर्वात्मना कात्स्न्येन रत्नमयौ 'अच्छा' अच्छौ-स्वच्छौ 'सण्हा' श्लक्ष्णौ, 'लण्हा' मसृणौ, 'घट्ठा' घृष्टौ, शाणया सुवर्णादिवत् घृष्टौ इव. 'मट्ठा' मृष्टौ-मृष्टीकृतौ, 'नीरया' नीरजसौ रजोरहित्वेन उज्वलौ, 'निम्मला' निर्मलौ 'निष्पंका' निष्पको कर्दमरहितौ 'निक्कंकडच्छाया' निष्कङ्कटच्छायौ-निष्कङ्कटत्वेन कवचराहित्येन छायया कान्त्या विशिष्टौ 'सप्पभा' सप्रभौ-प्रभाविशिष्टौ, 'सस्सिरिया' सश्रीकौ-श्रिया परमशोभया सहितौ सश्रीको, 'सउज्जोया' सोयोतो, उद्योतेन प्रकाशेन सहितौ सोयोती, 'पासाईया' प्रासादीयौ-प्रसादाय प्रसत्तये हितो परमानन्दजनको 'दरिसणिज्जा' दर्शनीयौ-दर्शनयोग्यौ 'अभिरूवा' अभिरूपौ, 'पडिरूवा' प्रतिरूपौ स्तः, 'एत्थ णं' अत्र खलु-उपर्युक्तस्थले 'आरणच्चुयाणं' आरणाच्युतानाम् 'देवाणं' देवानाम् 'तिन्नि विमाणावाससया' त्रीणि विमानावासशतानि 'भवंतीति मक्खायं' भवन्ति इत्याख्यातं महावीरेण मया, अन्यैश्व तीर्थकृभिः , 'ते णं विमाणा' तानि खलु विमानानि 'सव्वरयणामया' सर्वरत्नकी है और परिधि भी असंख्यात कोडाकोडी योजन की है । वे कल्प सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं, चिकने हैं, मृदु हैं, घृष्ट हैं, मृष्ट हैं, नीरज, निर्मल, निष्पंक और निरावरण कान्ति वाले हैं, प्रभायुक्त, श्रीसम्पन्न, प्रकाशमय, प्रसन्नताप्रद, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हैं । इन कल्पों में आरण-अच्युत देवों के तीन सौ विमान हैं, ऐसा मैंने तथा अन्य तीर्थंकरों ने कहा है। __ वे विमान सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं, चिकने हैं, कोमल हैं, घृष्ट સર્વ રત્નમય છે, સ્વચ્છ છે, ચિકણુ છે, મૃદુ છે, ઘષ્ટ છે, મૃષ્ટ છે, નીરજ છે, નિર્મળ, નિઃપંક અને નિરાવરણ કાતિવાળા છે, પ્રભાયુક્ત, શ્રીસંપન્ન, પ્રકાશમય, પ્રસન્નતા પ્રદ, દર્શનીય, અભિરૂપ અને પ્રતિરૂપ છે. આ કમાં આરણ અશ્રુત દેવોના ત્રણ વિમાન છે, એમ મેં તથા અન્ય તીર્થકરેએ કહ્યું છે. તે વિમાને સર્વરત્નમય છે, સ્વચ્છ છે, ચિકણા છે, કેમલ છે, વૃષ્ટ प्र. १२० શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧

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