Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 925
________________ प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२६ ईशानादिदेवस्थानानि ९११ arfe माहेन्द्र सन्ति, 'वर्डिसया जहा ईसाणे' अवतंसकाः यथा ईशानेकल्पे पञ्च अशोकादयः पूर्वमुक्तास्तथैव माहेन्द्र कल्पेऽपि अवसेयाः 'नवरे' नवरम् - विशेषस्तु 'मझे इत्थ माहिंद डिसए' मध्ये अशोक सप्तपर्णचम्पकचूतावतंसकानां मध्ये, अत्र माहेन्द्रकल्पविषये माहेन्द्रावतंसको बोध्यः, 'एवं जहा सर्णकुमाराणं - देवाणं जाव विहरंति' एवं पूर्वोक्तरीत्या यथा सनत्कुमाराणाम् देवानां वक्तव्यता प्रतिपादिता तथैव माहेन्द्रदेवानामपि वक्तव्यता प्रतिपत्तव्या यावत् - ते खलु अवतंसका सर्वरत्नमया: अच्छाः, श्लक्ष्णाः, मसृणाः, घृष्टाः, मृष्टाः, इत्यादि पूर्वोक्तविशेषणविशिष्टाः सन्ति ते तावत् माहेन्द्रदेवाः महर्द्धिकाः महाद्युतिकाः, महायशसो महाबलाः, महानुभागाः, महासौख्याः हारविराजितवक्षसः कटक त्रुटितस्तम्भितभुजाः, अङ्गदकुण्डलमृष्टगण्डस्तलकर्णपीठधारिणो विचित्रहस्ताभरणाः विचित्रमाल्यानुलेपनधराः, कल्याणकप्रवरवस्त्रपरि अवतंसक ईशान कल्प के समान समझने चाहिए, मगर बीचोंबीच यहां माहेन्द्रावतंसक कहना चाहिए। तात्पर्य यह है कि अशोकावतंसक, सप्तपर्णावतंसक, चम्पकावतंसक तथा चूतावतंसक के मध्य मैं माहेन्द्रावतंसक है । इस प्रकार माहेन्द्र देवों की वक्तव्यता भी सनत्कुमार देवों के समान ही समझना चाहिए। यावत वे अवतंसक सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं, चिकने हैं, घृष्ट हैं, मृष्ट हैं इत्यादि सभी विशेषणों से युक्त हैं । माहेन्द्र देव महर्दिक, महायुतिक, महायशस्वी, महाबल, महानुभाग तथा महासुख सम्पन्न हैं । उनके वक्षस्थल हार से शोभायमान रहते हैं । उनकी भुजाएं कटकों और त्रुटितों से स्तब्ध रहती हैं । वे अंगद, कुंडल और कर्णपीठ के धारक होते हैं। हाथों में अद्भुत आभूषण पहनते हैं । अद्भुत माला और अनुलेपन के धारक होते हैं । कल्याणकारी और अत्युत्तम वस्त्रों का છે પરન્તુ ખરાખર વચમા અહિં માહેન્દ્રાવત ́સ કહેવુ જોઇએ તાત્પ આ છે કે અશેકાવત’સક સવ ંસક, ચંપકાવત...સક તથા ચૂતાવત'સકતા મધ્યમાં મહેન્દ્રાવત સક છે. આ પ્રકારે માહેન્દ્ર દેવાની વક્તવ્યતા પણ સર્કુમાર ઢવાની સમાનજ સમજવી જોઇએ. તે અવતસકે સરત્નમય છે, સ્વચ્છ છે ચિકણા છે, દૃષ્ટ દૃષ્ટ છે, ઈત્યાદિ બધા વિશેષણાથી યુક્ત છે. ત્યાં માહેન્દ્ર દેવ મહર્ધિક, મહાદ્યુતિક, મહાયશસ્વી, મહાખેલ, મહાનુભાગ તથા મહાસુખ સ'પન્ન છે, તેમના વક્ષસ્થલહારથી શાભાયમાન રહે છે. તેમની ભુજાએ કટકા અને ત્રુટિતાથી સ્તબ્ધ રહે છે. તેઓ ગઇ, કુ...ટલ અને અનુલેપનના ધારક હાય છે. હાથામાં અદ્ભુત આભૂષણ પહેરે છે. કલ્યાણકારી અને અત્યુત્તમ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008 1009 1010 1011 1012 1013 1014 1015 1016 1017 1018 1019 1020 1021 1022 1023 1024 1025 1026 1027 1028 1029