Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्र ऐरावतबाहना, सुरेन्द्रः, अरजोऽम्बरवस्त्रधरः आलगितमालामुकुटः नवहेमचारुचित्तचञ्चलकुण्डलविलिख्यमानगण्डो महर्द्धिको यावत् प्रपभासयन् स खल्ल तत्र द्वात्रिंशतो विमानावासशतसहस्राणाम् चतुरशीतेः सामानिकसाहस्रीणाम्, त्रयस्त्रिंशत् त्रायस्त्रिंशकानाम्, चतुर्णा लोकपालानाम्, अष्टानाम् अग्रमहिषीणाम् सपरिवाराणाम्, तिसृणां पर्षदाम्, सप्तानाम् अनीकानाम्, सप्तानाम् अनीकाधिपतीनाम्, चतसृणां चतुरशीतीनाम् आत्मरक्षकदेवसाहस्रीणाम्, अन्ये. जिसका वाहन है (सुरिंदे) देवों का इन्द्र (अयरंबरवत्थधरे) रज रहित स्वच्छ वस्त्रों का धारक (आलइयमालमउडे) संसक्त माला और मुकुट वाला (नवहेमचारचित्त चंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगंडे) नूतन स्वर्णमय सुन्दर विचित्र चंचल कुंडलों से जिनके गण्डस्थल का विलेखन होता है (महिड्डिए) महर्द्धिक (जाव पभासेमाणे) यावत् प्रकाशित करता हुआ (से णं) वह (बत्तीसाए विमाणावाससयसहस्साण) बत्तीस लाख विमानों का (चउरासीए सामाणियसाहस्सीणं) चौरासी हजार सामानिक देयों का (तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं) तेतीस त्रायस्त्रिंशक देयों का (चउण्हं लोगपालाणं) चार लोकपालों का (अट्टण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं) परिवार सहित आठ अग्रमहिषियों का (तिण्हं परिसाणं) तीन परिषदों का (सत्तण्हं अणीयाणं) सात अनीकों का (सत्तण्हं अणीयाहिवईणं) सात अनीकाधिपतियों का (चउण्हं चउरासीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं) चार चौराप्ती हजार अर्थात् तीन लाख छत्तीस हजार आत्मरक्षक देवों का (अन्नेसिं च बहूणं) अन्य बहुत-से (सोहम्मकप्पवासीणं) सौधर्मकल्प के निवासी (वेमाणियाणं हिवई) मत्रीस ५ विमानाने अधिपति (एरावणवाहणे) रावत थी रेनु बाहुन छ (पुरिंदे) हेवानान्द्र (अयरंबरवत्थधरे) २०४२डित सोना धा२४ (आलइयमालमउडे) ससतमा भने भुटवा. (नवहेमचारुचित्त चंचलकुंडल विलिहिज्जमाणगंडे) न्तन समय सुन्६२ वियित्र यस
जाथी ना यानु विसेमन थाय छ (महढिए) भद्धि (जावपमासे माणे) यावर प्रशित ४२ (सेणं) त (बत्तीसाए विमाणावाससयसहस्साणं) मत्रीस am विमानानी (चउरासीए सामाणियसाहस्सीणं) थारासी उत्तर सामानि वोना (तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं) तत्रीस त्रायशि४ हेवाना (चउण्हं लोगपालाण) य॥२ सालाना (अदृण्हं अग्ग महिसीणं सपरिवाराणं) परिवार सहित २मा8 अअमहियाना (तिण्हं परिसाणं) ३५ परिवहन। (सत्तण्हं अणीयाण) सात मनीना (सत्तण्हं अणियाहिवईण) सात मनीधिपतियाना (चउण्हं चउरासीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं) या२ यारासी ॥२ अर्थात् त्र
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧