Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे टीका-अथ पर्याप्तापर्याप्तकपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानां स्थानादिकं प्ररूपयितुं गौतमः पृच्छति-'कहि णं भंते ! पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं' हे भदन्त ! कुत्र खलु-कस्मिन् प्रदेशे पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानाम् ‘पज्जत्तापज्जत्तगाणं' - पर्याप्तापर्याप्तकानाम् 'ठाणा पण्णत्ता'-स्थानानि स्वस्थानानि प्रज्ञप्तानि ? प्ररूपितानि सन्ति ? भगवानाह-'गोयमा !' उडुलोए तदेकदेसभाए'-ऊर्ध्वलोके तदेकदेशमागे मन्दरादिवाप्यादिषु मत्स्यादीनां तिर्यपञ्चन्द्रियाणां सत्वात्, 'अहो लोए तदेकदेसभाए'-अधोलोके तदेकदेशभागे-अपो लोकस्यग्रामकूपा दिषु तेषां शयों में (जलट्ठाणेसु) जल के स्थानों में (एत्थ णं) इन स्थानों में (पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं) पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के (पज्जत्तापज्जत्ताणं) पर्याप्तों और अपर्याप्तों के (ठाणा) स्थान (पण्णत्ता) कहे हैं। (उववाएणं) उपपात की अपेक्षा (लोयस्स असंखेज्जइभागे) लोक के असंख्यातवें भाग में (समुग्घाएणं) समुद्घात की अपेक्षा (सव्वलोयस्स असंखेज्जइभागे) सर्व लोक के असंख्यातवें भाग में (सहाणेणं) स्वस्थान की अपेक्षा (सव्वलोयस्स असंखेज्जइभाए) सर्व लोक के असंख्यातवें भाग में ॥१५॥ ____टीकार्थ-अब पर्याप्त एवं अपर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यचों के स्थान आदि की प्ररूपणा की जाती है । गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं-भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यचों के स्वस्थान कहां कहे हैं ? भगवान् उत्तर देते हैं-ऊर्ध्वलोक के अन्दर उस के एक देश भाग में अर्थात् मन्दर पर्वत की वावड़ियों आदि में मत्स्य आदि पंचेन्द्रिय तियचों का अस्तित्व होता है । अधोलोक के अन्दर उसके एक देश जलासयेसु) मा ४॥शयोमा (एत्थ ण) मा स्थानमा (पंचिंदियतिरिक्खजोणि याण) ५'यन्द्रिय तय याना (पज्जत्तापज्जत्ताण) पर्याप्त मने मर्याताना (ठाणा) स्थानों (पण्णत्ता) ४॥ छ (उववाएणं) उतनी अपेक्षाये (लोयस्स असंखेज्जइभाए) न मसण्यातमा भागमा (समुग्घाएग) समुद्धातनी अपेक्षा (सब्वलोयस्स असंखेज्जइभाए) सोना मध्यातमा लामा (सहाणेणं) २१२थाननी अपेक्षाये (सव्वलोयस्स असंखेज्जइभाए) सोना અસંખ્યાતમા ભાગમાં છે ૧૫ છે
ટીકાઈ–વે પર્યાપ્ત તેમજ અપર્યાપ્ત પંચેન્દ્રિય તિર્યંચના સ્થાન આદિની પ્રરૂ પણ કરાય છે. ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે કે ભગવાન ! પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત પંચેન્દ્રિય તિયચેના સ્થાન કયાં કહ્યાં છે? ભગવાન ઉત્તર આપે છે–ઉર્વ લોકના અંદર તેના એક ભાગમાં અર્થાત્ મંદર પર્વતની વાવડી આદિમાં મસ્ય આદિ પંચેન્દ્રિય તિર્યચેનું અસ્તિત્વ હોય છે. અલેકની અંદર
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧