Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.१९ नागकुमारदेवानां स्थानानि ७४३ कसाहस्रीणाम् त्रयस्त्रिंशत् त्रायस्त्रिंशकानाम्, चतुणां लोकपालानाम् षण्णाम् अग्रमहिषीणाम् सपरिवाराणाम्, तिसृणा पर्षदाम्, सप्तानाम् अनीकानाम्, सप्तानाम् अनीकाधिपतीनाम् चतुर्विशतेः आत्मरक्षकदेवसाहस्रीणाम्, अन्येषाश्च बहूनाम् दाक्षिणात्यानाम् नागकुमाराणाम् , देवानाश्च देवीनाञ्च आधिपत्यम् पौरपत्यम् कुर्वन विहरति, कुत्र खलु भदन्त ! औत्तराहाणाम् नागकुमाराणाम् देवानाम् पयाँ(नागकुमारिंदे) नागकुमारों का इन्द्र (नागकुमारराया) नागकुमारों का राजा (परिवसइ) वसता है (महिडिए जाव पभासेमाणे) महद्धिक यावत् प्रकाशित करता हुआ
(से णं) वह धरणेन्द्र (तत्थ) वहां (चउयालीसाए भवणावाससयसहस्साणं) चवालीस लाख भवनों का (छण्हं सामाणीयसाहस्सीणं) छह हजार सामानिक देवों का (तापत्तीसाए तायत्तीसगाणं) तेतीस त्रायस्त्रिंशक देवों का (चउण्हं लोगपालाणं) चार लोकपालों का (छण्हं अग्गमहिसीणं) छह अग्रमहिषियों का (सपरिवाराणं) परिवार सहितों का (तिण्हं परिसाणं) तीन परिषदों का (सत्तण्हं अणियाणं) सात अनीकों का (सत्तण्हं अणियाहिवईणं) सात अनीकाधिपतियों का (चउव्वीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीणं) चौवीस हजार आत्मरक्षक देवों का (अन्नेसिं च बहणं) और अन्य बहुत-से (दाहिणिल्लाणं णागकुमाराणं देवाण य देवीण य) दक्षिण दिशा के नागकुमार देवों
और देवियों का (आहेवच्चं) आधिपत्य (पोरेवच्च) अग्रेसरपना (कुब्वमाणे) करता हुआ (विहरइ) रहता है। (नागकुमारिंदा) नाराभाराना न्द्र (नागकुमार राया) नागभाना २०n (परिवसइ) से छे (महि ढिया जाव पभासेमाणे) भरपि यावत् प्रशित ४२॥ २७सा.
(सेणं) ते धरणेन्द्र (तत्थ) त्यां (चउयालीसाए भवणावाससयसहस्साणं) युभातीस सा सपनाना (छण्हं सामाणियसाहस्सीण) ७ ०१२ सामानिय हेवाना (तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं) तेत्रीस त्रायशि४ हेवोना (चउण्हं लोगपालाणं) या२ ४ासना (छण्हं अग्गम हिसीण) छ महिषीयाना (सपरिवाराणं) परिवार साथेन (तिण्हं परिसाणं) त्र ५२५होना (सत्तण्हं अणियाणं) सात मनी (सत्तण्हं अणियाहि बईणं) सात मनीधिपतियोना (चवीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीणं) यावीस ॥२ माम२६४ टेवोना (अन्नेसिं च बहूणं) भने गीत ॥ गधा (दाहिणिल्लाणं नागकुमाराणं देवाणं य देवीण य) दक्षिण हिशान नामा२ द्वेवे। मने वियोना (आहेवच्चं) माधिपत्य (पोरेवच्चं) भग्रेस२५४ (कुव्वमाणे) ४२॥ (विहरइ) रहे छ
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧