Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेययोधिनी टीका प्र. पद १ सू.३३ परिसर्पस्थलचरपञ्चेन्द्रियतियग्योनिकाः ३९९ ते संमुच्छिमा ते सव्वे नपुंसगा। तत्थ णं जे ते गन्भवतिया ते तिविहा पण्णत्ता तं जहा-इत्थीर, पुरिसा२, नपुंसगा। एएसिणं एवमाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं भुयपरिसप्पाणं नवजाइ कुलकोडिजोणिप्पमुहसयसहस्साइं भवंतीति मक्खायं । से तं भुयपरिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया । सेत्तं परिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया ॥सू० ३३॥ ।
छाया-अथ के ते महोरगाः ? महोरगा अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, प्रज्ञप्ताः, तद्यथासन्त्ये के अंगुलमपि, अंगुलपृथक्त्यिका अपि, वितस्तिमपि, वितस्तिपृथक्त्विका अपि, रत्नमपि, रत्निपृयक्त्विका अपि, कुक्षिमपि, कुक्षिपृथक्त्विका अपि, धनुरपि धनुःपृथक्त्विका अपि, गव्यूतमपि गव्यूतपृथक्त्विका अपि योजनमपि, योजनपृथ
शब्दार्थ-(से किं तं महोरगा ?) महोरग कितने प्रकार के है ? (अणेगविहा पण्णत्ता) महोरग अनेक प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार के हैं (अत्थेगइया) कोई-कोई (अंगुलं पि) एक अंगुल के भी (अंगुलपुहुत्तिया वि) दो अंगुल से नौ अंगुल तक के भी (वियथि पि) विलात भर के भी (वियथि पुहुत्तिया वि) दो से नौ विलात के भी (रयणि पि) एक हाथ के भी (रयणिपुहुत्तिया वि) दो से नौ हाथ के भी (कुच्छि पि) कुक्षि प्रमाण भी (कुच्छिपुहुत्तिया वि) दो से नौ कुक्षि के भी (धणुं पि) धनुष प्रमाण भी (धणुपुहुत्तिया वि) दो से नौ धनुष के भी (गाउयं पि) गव्यूति प्रमाण भी (गाउयपुहुत्तिया वि) गव्यूति पृथक्त्व-दो से नौ गव्यूति के मी (जोयणं पि) योजन प्रमाण
हाथ-(से किं तं महोरगा) भाग ८६॥ ४॥२॥ छ ? (महोरगा) भा२॥ (अणेगविहा पण्णत्ता) महा२३. मने प्रारना ह्या छ (तं जहा) तेस। या प्रारे (अत्थेगईया) । (अंगुलंपि) २४ २५ शुस ५ (अंगुलपुहुत्तिया वि) मे मथी नौ २मा सुधीन ५९५ (वियत्थिं पि) विसात-बेतना ५४ (वियत्थिपहत्तिया वि) मे थी नव विad-वेतन ५५ 'रयणि पि' मे हाथ अभाना ५ (रयणिपहुत्तिया वि) मे थी नव हुयना ५५ (कुच्छिं पि) सुक्षि प्रमाणुना (कुच्छि पुहुत्तिया वि) ये थी ५ युक्षि प्रमाना
(धणु पि) धनुष प्रमाण ५ (धणुपुहुत्तिया वि) मे थी न५ धनुषन। ५ (गाउयं पि) म०यूति-मे 16 प्रभार ५९५ (गाउय पुहुत्तिया पि) अव्यूति पृथ४.५ मर्थात् में व्यतिथी नव यति सुधिना (जोयणं पि) यो प्रभाधुना
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧