Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पर्याप्तकाश्च, अपर्याप्तकाश्च । ते एते भवनवासिनः १ । अथ के ते वानव्यन्तराः ? वानव्यन्तराः अष्टविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-किन्नराः १, किम्पुररुषाः २, महोरगाः ३, गन्धर्वाः ४, यक्षाः ५, राक्षसाः ६, भूताः ७, पिशाचाः ८ । ते समासतो द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पर्याप्तकाश्च, अपर्याप्तकाश्च । ते एते वानव्यन्तराः २, अथ के ते ज्योतिषिकाः ? ज्योतिषिकाः पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-चन्द्राः १, सूर्याः २, ग्रहाः ३, नक्षत्राणि ४, ताराः ५। ते समासतो द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पर्याप्तकाश्च, अपर्याप्तकाश्च, । ते एते ज्योति
(से किं तं वाणमंतरा ?) याणव्यन्तर देव कितने प्रकार के हैं ? (अट्टविहा पण्णत्ता) आठ प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (किन्नरा) किन्नर (किंपुरिसा) किम्पुरुष (महोरगा) महोरग (गंघवा) गन्धर्व (जक्खा) यक्ष (रक्खसा) राक्षस (भूया) भूत (पिसाया) पिशाच (ते समासओ) वे संक्षेप से (दुरिहा पण्णत्ता) दो प्रकार के कहे गए हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (पजत्तगा य अपजत्तगा य) पर्याप्त और अपर्याप्त (से त्तं वाणमंतरा) यह याणव्यन्तर हुए। ___ (से किं तं जोइसिया ?) ज्योतिष्क देव कितने प्रकार के हैं ? (पंचविहा पण्णत्ता) पांच प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (चंदा) चन्द्र (सूरा) सूर्य (गहा) ग्रह (णक्खत्ता) नक्षत्र (तारा) तारे (ते समासओ) वे संक्षेप से (दुविहा पण्णत्ता) दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (पजत्तगा य अपज्जत्तगा य) पर्याप्तक और अप
२॥ ४॥ छ (पज्जत्तगा य अपज्जत्तगाय) पर्यात न्यने ५५H (से तं भवणवासी) 24. लवनपति था.
(से किं तं वाणमंतरा ?) पाशुभत२ हे। ४८८॥ ४॥२॥ छ ? (बाणमंतरा अविहा पण्णता) वानव्य त२ हेवे। २8 ५४२ ४ा छ (तं जहा) तेस। माशत (किन्नरा) (२ (किंपुरिसा) ५३५ (महोरगा) भड।२। (गंधब्वा) आय (जक्खा) यक्ष (रक्खसा) २राक्षस (भूया) भूत (पिसाया) पिशाय (ते समासओ) तयाटुमा (दुविहा पण्णत्ता) मे ५४०२न४ङपाया छे (तं जहा) तेथे। मा २ छ (पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य) पर्याप्त मने मर्यात (से तं याणमंतरा) मा वाव्यन्त२ च्या
(से किं तं जोइसिया ?) याति४ हेव डेटा ४२छ ? (जोइसिया) ज्योतिष् हेवे। (पंचविहा पण्णत्ता) पांय ४२॥ ४॥ छ (तं जहा) ते॥ २॥ ४ारे (चंदा) यंद्र (सूरा) सूर्य (गहा) प्रड (नक्खत्ता) नक्षत्र (तारा) तारा (ते समासओ) ते सपथी (दुविहा पण्णत्ता) मे २॥ ४॥ छे (तं नहा)
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧