Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनास्त्रे
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यलोयतद्वेय' - तिर्यग्लोकतत्स्थे च अपर्याप्तकवादर तेजस्कायिका वर्तन्ते, अयमभिप्रायः - अर्धतृतीयद्वीपसमुद्रनिर्गते अर्द्धतृतीयद्वीपसमुद्रप्रमाणविस्तारे पूर्वापरदक्षिणोत्तरस्वयम्भूरमणपर्यन्ते ये कपाटे केवलिसमुद्घातकपाटवद् ऊर्ध्वमपि लोकान्तं स्पृष्टे अधोऽपि लोकान्तं स्पृष्टे ते ऊर्ध्वकपाटे, तयोः ऊर्ध्वकपाटयोः एवं तिर्यग्लोके तत्स्थं स्थालं तदिवेति तिर्यग्लोकतत्स्थं तस्मिंश्च स्वयम्भूरमणसमुद्र वेदिकापर्यन्ते अष्टादशयोजनशतवाद्दल्ये समस्ततिर्यग्लोके च उपपातापेक्षया अपर्याप्तबादरतेजस्कायिकानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि, यद्वा तयोः कपाटयोः स्थितस्तत्स्थः, तिर्यग्लोकवासौ तत्स्थश्चेति तिर्यग्लोकतत्स्थस्तस्मिन् तयोरूर्ध्वकपाटयोरन्तर्वर्तितिर्यग्लो केचेत्यर्थः एवञ्च द्वयोरूर्ध्वकपाटयोर्यथोक्तस्वरूपयोस्तिर्यग्लोकेऽपि च तत्स्थ में अपर्याप्तक बादर तेजस्कायिक रहते हैं । अभिप्राय यह हैअढाई द्वीप - समुद्र में निकले हुए, अढाई द्वीप - समुद्र के बराबर विस्तार वाले और पूर्व पश्चिम, दक्षिण और उत्तर में स्वयंभूरमण समुद्र पर्यन्त जो कपाट केवलिसमुद्घात के समय के कपाट की तरह ऊपर भी लोक के अन्त तक स्पृष्ट हैं और नीचे भी लोकान्त तक स्पृष्ट हैं, वे ऊर्ध्वकपाट कहलाते हैं । 'तिरियलोयतदृ' में 'तट्ट' का अर्थ है स्थाल, अर्थात् स्थाल ( थाल) सरीखा । तिर्छा लोक रूप तह तिर्यक् लोकतट्ट कहलाता है । इसका आशय यह है कि स्वयंभूरमण समुद्र की वेदिका पर्यन्त, अठारह सौ योजन मोटे उस तह में तथा समस्त तिर्चे लोक में, उपपात की अपेक्षा अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीवों के स्थान हैं । दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि उन दोनों कपाटों में जो स्थित हो वह तह अर्थात् तत्स्थ कहलाता है, इस प्रकार तिर्यक् लोक रूप तत्स्थ में अर्थात उन ऊर्ध्वकपाटों के अन्दर स्थित तिर्छे लोक में होते हैं । इसका आशय यह हुआ कि पूर्वोक्त दोनों ऊर्ध्वकपार्टी સ્કાયિક રહે છે. અભિપ્રાય આ છે-અઢાઇ દ્વીપ સમુદ્રના ખરાખર વિસ્તારવાળા અને પૂર્વ પશ્ચિમ, દક્ષિણ અને ઉત્તરમાં સ્વયંભૂરમણ સમુદ્ર પર્યન્ત જે કપાટ કેલિ સમુદ્ધાતના સમયના કપાટની જેમ ઉપર પણ લેાકના અન્તસુધી પૃષ્ટ છે અને નીચે પણ લેાકાન્ત સુધી પૃષ્ટ છે, તેઓ ઉર્ધ્વ કપાટ કહેવાય છે. ( तिरियलोयट्ट) भां तट्टनो अर्थ छे स्थास अर्थात् थास સરખા તિરછા લાક રૂપ તદ્ન તિય લેાક તદ્ન કહેવાય છે. એનેા આશય આ છે કે સ્વયંભૂ સમુદ્રની વેદિકા સુધી, અઢાર સા યેાજન માટી તે તહુમા તથા સમસ્ત તિર્થાં લાકમાં, ઉપપાતની અપેક્ષાએ અપ પ્ત ખાદર તેજસ્કાયિક જીવાના સ્થાન છે. ખીજો અર્થ આપણુ થઈ શકે છે કે તે બન્ને કુપાટામાં જે સ્થિતિ હાય તે તઢુ
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧