Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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__प्रज्ञापनासूत्रे वित्वका अपि, योजनशतमपि, योजनशतपृथवित्वका अपि, योजनसहस्रमपि । ते खलु स्थले जाताः, जलेऽपि चरन्ति स्थलेऽपि चरन्ति, ते न सन्तीह, बाह्येषु द्वीपेषु समुद्रेषु भवन्ति, ये चान्ये तथाप्रकाराः, ते एते महोरगाः। ते समासतो द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा संमूछिमाश्थ, गर्भव्युत्क्रान्तिकाथ । तत्र खलु ये ते समूछिमास्ते सर्वे नपुंसकाः । तत्र खलु ये त गर्मव्युत्क्रान्तिकास्ते खलु त्रिविधाः प्रज्ञमाः, तद्यथा-स्त्रियः, पुरुषाः नपुंसकाः एतेषां खलु एवमादिकानां पर्याप्ताभी (जोयणपुहुत्तिया वि) दो से नौ योजन के भी (जोपणसयं पि) सौ योजन के भी (जोयणसयपुहुत्तिया चि) दोसौ से नौ सौ योजन के भी (जोयणसहस्सं पि) हजार योजन अवगाहना के भी होते हैं । (ते णं थले जाया) वे स्थल में उत्पन्न होते हैं (जले वि चरंति थले वि चरंति) जल में भी विचरण करते हैं, थल में मी विचरण करते हैं। (ते णत्थि इहं) वे यहां नहीं होते (बाहिरएसु दीयेसु समुद्देसु हवंति) मनुष्य क्षेत्र से बाहर के द्वीप समुद्रों में होते हैं (जे यावन्ने तहप्पगारा) अन्य जो ऐसे हैं । (से तं महोरगा) यह महोरगों की प्ररूपणा हुई।
(ते समासओ दुविहा पण्णत्ता) उरपरिसर्प संक्षेप से दो प्रकार के कहे हैं (समुच्छिमा य गम्भवक्कंतिया य) संमूर्छिम और गर्भज (तत्थ णं जे ते संमुच्छिमा) इनमें जो संमूर्छिम हैं (ते सव्वे नपुंसगा) वे समी नपुंसक हैं । (तत्थ णं जे ते गम्भवक्कंतिया) उनमें जो गर्मज हैं (ते णं तिविहा पण्णत्ता) वे तीन प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (इत्थी पुरिसा नपुंसगा) स्त्री, पुरुष, नपुंसक (एएसि णं एवमाझ्याणं पy (जोयण पुहुत्तिया वि) मसाथी नक्सो योन सुधीन५५ (जोवणसर्व वि) से योन प्रभाए ५६४ (जोयण सयपुहुत्तिया वि) से थी नपस यान ५५] (जोयणसहस्सं वि) १२ योननी २५॥इनाना पडाय छ
(ते णं थले जाया) ते स्थमा उत्पन्न थाय छ (जलेवि चरंति थले वि चरंति) मा ५ विय२५ ४२ छ, थमा ५ (वय ४२ छ. (ते णत्यि इई) तेसो गाडी नथी यता (बाहिए दीवेसु समुद्देसु हवंति) मनुष्य क्षेत्रना महान द्वीप समुद्रमा थाय छ (जे यावन्ने तहप्पगारा) uीरे माछ (से तं महोरगा) २॥ भागनी ५३५। ७ ।
(ते समासओ दुविहा पण्णत्ता) ३२५रिसप सपथी मे २॥ ४ा छे. (समुच्छिमा य गब्भवक्कंतिया य) स भूछि म मने (तत्थणं जे ते संमूच्छिमा) तेभारे सभूमि छ (ते सव्वे नपुंसगा) ते मानस छ (तत्य णं जे ते गम्भवक्कंतिया) तयामा छ (तेणं तिविहा पण्णत्ता) तसा त्राम प्रसारना उद्या (तं जहा) ते २॥ प्रारे (इत्थि, पुरिसा, नपुसगा) खी, ५३१, नपुस
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧