Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे समासतो द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पर्याप्तकाश्च अपर्याप्तकाच, तत्र खलु ये ते अपर्याप्तका स्ते खलु असंप्राप्ताः। तत्र खलु ये ते पर्याप्तकाः एतेषां वर्णादेशेन गन्धादेशेन रसादेशेन स्पर्यादेशेन सहस्राग्रशो विधानानि, संख्येयानि योनि प्रमुख शतसहस्राणि, पर्याप्तकनिश्रया अपर्याप्ता व्युत्क्रामन्ति, यत्रैकस्तत्र नियमात् असंख्येयाः । ते एते बादराप्कायिकाः । ते एते अप्कायिकाः ॥ सू० १५॥
(जे यावन्ने) अन्य जो भी (तहप्पगारा) इसी प्रकार के (ते) वे (समासओ) संक्षेप से (दुविहा) दो प्रकार के (पन्नत्ता) कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (पज्जत्तगा य) पर्याप्तक (अपज्जत्तगा य) और अपर्याप्तक (तत्थ णं) उनमें से (जे ते अपज्जत्तगा) जो अपर्याप्त हैं (ते णं) ये (असंपत्ता) असंप्राप्त हैं (तत्थ णं) उनमें से (जे ते पज्जत्तगा) जो पर्याप्त हैं (एतेसिं) इनके (यण्णादेसेणं) वर्ण की अपेक्षा से (गंधा देसेणं) गंध की अपेक्षा से (रसादेसेणं) रस की अपेक्षा से (फासादेसेणं) स्पर्श की अपेक्षा से (सहस्प्लग्गसो) हजारों (विहाणाई) भेद हैं (संखेज्जाई) संख्यात (जोणियप्पमुहसयसहस्साई) लाख योनि प्रमुख हैं (पज्जत्तगनिस्साए) पर्याप्तक जीव के आश्रय से (अपज्जत्तगा) अपर्याप्तक (वकमंति) उत्पन्न होते हैं (जत्थ) जहाँ (एगो) एक (तत्थ) वहां (नियमा) नियम से (असंखेज्जा) असंख्यात हैं (से तं बायर आउकाइया) यह बादर अप्काय की प्ररूपणा हुई (से तं आउकाइया) यह अप्काय की प्ररूपणा हुई ॥१५॥
(ये यावन्ने) अन्य ५५ (तहप्पगारा) २॥ प्रारना डाय (ते) तेमा (समासओ) सपथी (दुविहा) 2. प्र१२ना (पण्णत्ता) ४ा छ (तं जहा) ते मा २ (पज्जत्तगा) पर्यापत (अपज्जत्तग्गा य) भने २५यात
(तत्थ णं) तेसमाथी (जे ते अपज्जत्तगा) ले २५५र्याप्त छ (ते ण) तेथे। (असंपत्ता) मसात (तत्थणं) तेगामाथी (जे ते पज्जत्तगा) हे पर्यात छ. (एएसिं) मेमन (वण्णादेसेणं) पनी अपेक्षाथी (गंधादेसेणं) धनी मपेक्षाये (रसादेसेणं) २सनी अपेक्षा (फासादेसेण) २५शनी अपेक्षा (सहस्सग्गसो) हुन। (विहाणाई) मे छे. (संखेज्जाइं) सयात (जोणियप्पमुहसय सहस्साई) ५ योनि प्रभुभ छ (पज्जत्तगनिस्साए) पर्यात ना माश्रये (अपज्जत्तगा) २१५४ (वक्कमंति) उत्पन्न थाय छे.
(जत्थ) न्या (एगो) ४ (तत्थ) त्या (नियमा) नियमयी (असंखेज्जा) मसयात छ (से तं बायरआउकाइया) २॥ माढ२ मायनी प्र३५॥ २७ (सत्तं आउकाइया) मा २१४ायनी प्र३५॥ 25. ॥ सू. १५ ॥
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧