Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका प्र, पद १ सू १९ समेदवनस्पतिकायिकनिरूपणम् २६७ दाली १९ च १८ । अफेया२० अति मुक्तक २१-नाग २२ लते कृष्णसरवल्ली २३ च । संघट्टा २४ सुमानसाऽपि २५ च जासुवना २६ कुविन्दवल्ली २७ च । १९ । मृवीका २८ अम्बावल्ली २९ कृष्णक्षीराली ३० जयन्ती ३१ गोपाली ३२। पाणी ३३ मासावल्ली ३४ गुञ्जीवल्ली ३५ च विच्छाणी ३६॥२० । ससिवी ३७ द्विगोत्रस्पृष्टा ३८ गिरिकणिका ३९ मालुका ४० च अञ्जनकी ४१। दधिस्फोटकी ४२ काकली ४३ मोकली ४४ च तथा अर्कबोन्दी ४५। २१ । या श्वान्या स्तथाप्रकारः। ता एता वल्ल्यः ५। ।
(अफ्फेया) अफ्फेया, (अइमुत्तगलता) अतिमुक्तकलता, (णागलया) नागलता, (कण्हसूरयल्ली य) और कृष्णसूरयल्ली, (संघ) संघट्टा, (सुमणसा वि य) और सुमनसा भी (जासुवण) जासुवन (कुबिंदवल्ली य) और कुविन्द वल्ली, (मुद्दीय) मुद्रीका, (अंबावल्ली) अम्बावल्ली, (किण्हछीराली) कृष्णक्षीराली, (जयंति) जयन्ती, (गोवाली) गोपाली, (पाणी) पाणी, (मासावल्ली) मासायल्ली, (गुंजीयल्ली) गुञ्जीवल्ली, (विच्छाणी) विच्छाणी, देशविशेष में प्रसिद्ध इन पल्लियों को भी स्वयं समझ लेना चाहिए । _ (ससिवि) ससिवी (दुगोत्तफुसिया) द्विगोत्र स्पृष्टा, (गिरिकण्णइ) गिरिकणिका, (मालुया य) और मालुका (अंजणई) अंजनकी, (दहिफोल्लइ) दधिस्फोटकी, (कागलि) काकली (मोगली य) और मोकली (तह) तथा (अक्कयोंदीया) और अर्कबोन्दी (जे यावन्ना तहप्पगारा) इसी प्रकार की अन्य भी जो हैं (से तं बल्लीओ) यह चल्लियों की प्ररूपणा हुई ॥२४॥
(अफ्फेया) २५५श्य। (अइमुत्तग-लया) मतिभुतता (गागलता) नासत (कण्हसूरवल्लीय) मने पशुसू२१८सी (संघट्ट) सट्टा (सुमणसाविय) मने सुमनस (जासुवण) सुबन (कुविंद वल्लीय) मने विन्द पक्षी.
(मुद्दिय) भुदि। (अंवावल्ली) An aceी (किण्ह छीराली) ९ क्षाही (जयंती) यन्ती (गोवाली) nial (पाणी) पाणी (मासावल्ली) भास al (गुजीवल्ली) गु पदरी (विच्छाणी) विछाती हे विशेषमा प्रसिद्ध ॥ વલીઓને પણ તેજ સમજી લેવી જોઈએ.
(ससिवी) ससिपी (दुगोत्त कुसिया) द्विगभरष्टा (गिरिकण्णइ) GAR ४. (मालुयाय) मने भाj४. (अंजणई) मनी (दहिफोल्लइ) दृघिरटही (कागलि) ४४ी (मोगली य) भने मौसी (तह) तथा (अक्यों दीया) भने म मोन्ही (जे यावन्ने तहप्पगारा) सेवी ततनी मी पण हाय (से ते वल्लीओ) ते तमाम पदशीवाय जति छ. २मा सीमानी प्र३५॥ .
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧