Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयबोधिनी टीका प्र, पद १ सू.२६ सभेदत्रीन्द्रियजीवनिरूपणम् ३५३ हस्थिसौण्डाः, ये चान्ये तथा प्रकाराः, सर्वे ते संमूर्छिमाः नपुंसकाः । ते समासतो द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पर्याप्तकाश्च अपर्याप्तकाश्च । एतेषामेवमादिकानां श्रीन्द्रियाणां पर्यप्तापर्याप्तानाम् अष्टजातिकुलकोटियोनिप्रमुखशतसहस्राणि भवन्तीत्याख्यातम् । सैषा त्रीन्द्रियसंसारसमापन्नजीवप्रज्ञापना ॥सू०२६॥ ___टीका-अथ त्रीन्द्रियसंसारसमापन्नजीवप्रज्ञापनां प्ररूपयितुमाह-'से कि तं तेइंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा'-'से'-अथ 'किं तं' का सा, कतिविधा कुस्थलबाहल (जूया) जू (हालाहला) हालाहल (पिसुआ) पिशुक (सयवाइया) शतपादिका (गोम्ही) गोम्मय (हत्थिसोंडा) हस्तिसौण्ड (जे यावन्ने तहप्पगारा) इसी प्रकार के जो अन्य हैं वे भी त्रीन्द्रिय हैं (सब्वे ते (संमुच्छिमा) वे सभी संमूच्छिम हैं (नपुंसगा) नपुंसक हैं (ते समासओ दुविहा पण्णत्ता) संक्षेप से वे दो प्रकार के हैं (पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य) पर्याप्त और अपर्याप्त (एएसि णं एवमाइयाणं) इन औपयिक आदि (तेइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं) पर्याप्त एवं अपर्याप्त त्रीन्द्रियों की (अठ्ठलक्ख कुलकोडि जोणियप्पमुहसयसहस्साई) आठ लाख योनि प्रमुख जाति कुलकोटियां (भवंतीतिमक्खाय) होती हैं, ऐसा कहा है (से तं तेइंदियसंसारसमावण्णजीवपन्नवणा) यह त्रीन्द्रिय संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना हुई । ॥२६॥
टीकार्थ-अब तीन इन्द्रियों चाले संसारी जीवों की प्ररूपणा करते हैं । प्रश्न है कि तीन इन्द्रियों वाले संसारी जीवों की प्ररूपणा कितने तरतु४ (कुच्छल वाहगा) स्थावा (जूया) (हालाहला) वा (पिसु ओ) पिशु (सयवाइवा) शता४ि (गोम्ही) मय (हत्थिसोंडा) स्तिसौ (जे यावन्ने तहप्पगारा) २वी नतना मी छ तेस। ५५ त्रीन्द्रिय छ (सव्वे ते संमुच्छिमा) तेथे। सपा स भूमि छ (नपुंसगा) नधुस छ (ते समासओ दुविहा पण्णत्ता) स५थी ते मे ॥२॥ छ (पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य) पर्यात भने २५५यात
___ (एएसि ण एवमाइयाण) मा मोपाय आह (तेइंदियाण पज्जत्ता पज्जत्ताण) पर्यात भने २५५ त्रीन्द्रियोनी (अट्टलक्खकुलकोडि जोणिप्पमुहसयसहस्साई) As an योनिप्रभु जति छोटीया (भवंतीति मक्खाय) डाय छे सेभ यु छ (से तं तेइन्दियसंसारसमावण्णजीवपन्नवणा) २॥ श्रीन्द्रिय ससार समापन वानी प्रज्ञापन॥ ५५ ॥ सू, २६ ॥ ટીકાથ–હવે ત્રણ ઇન્દ્રિય વાળા સંસારી જીની પ્રરૂપણ કરે છે પ્રશ્ન-ત્રણ ઇન્દ્રિયે વાળા સંસારી જીની પ્રરૂપણા કેટલા પ્રકારના છે प्र० ४५
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧